श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ६ अध्याय ६
श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ६ अध्याय
६ "दक्ष प्रजापति की साठ कन्याओं के वंश का विवरण"
श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: षष्ठ अध्यायः
श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ६ अध्याय
६
श्रीमद्भागवतपुराणम् स्कन्धः ६ अध्यायः
६
श्रीमद्भागवत महापुराण छठवाँ स्कन्ध छठवाँ अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ६ अध्याय
६ श्लोक का हिन्दी अनुवाद सहित
श्रीमद्भागवतं - षष्ठस्कन्धः
॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
॥ षष्ठोऽध्यायः - ६ ॥
श्रीशुक उवाच
ततः प्राचेतसोऽसिक्न्यामनुनीतः
स्वयम्भुवा ।
षष्टिं सञ्जनयामास दुहितॄः
पितृवत्सलाः ॥ १॥
दश धर्माय कायेन्दोर्द्विषट्त्रिणव
दत्तवान् ।
भूताङ्गिरःकृशाश्वेभ्यो द्वे द्वे
तार्क्ष्याय चापराः ॥ २॥
नामधेयान्यमूषां त्वं सापत्यानां च
मे श्रृणु ।
यासां प्रसूतिप्रसवैर्लोका
आपूरितास्त्रयः ॥ ३॥
भानुर्लम्बा ककुद्यामिर्विश्वा
साध्या मरुत्वती ।
वसुर्मुहूर्ता सङ्कल्पा धर्मपत्न्यः
सुताञ्छृणु ॥ ४॥
भानोस्तु देवऋषभ इन्द्रसेनस्ततो नृप
।
विद्योत आसील्लम्बायास्ततश्च
स्तनयित्नवः ॥ ५॥
ककुदः सङ्कटस्तस्य कीकटस्तनयो यतः ।
भुवो दुर्गाणि जामेयः स्वर्गो
नन्दिस्ततोऽभवत् ॥ ६॥
विश्वेदेवास्तु विश्वाया
अप्रजांस्तान् प्रचक्षते ।
साध्योगणस्तु साध्याया
अर्थसिद्धिस्तु तत्सुतः ॥ ७॥
मरुत्वांश्च जयन्तश्च मरुत्वत्यां बभूवतुः
।
जयन्तो वासुदेवांश उपेन्द्र इति यं
विदुः ॥ ८॥
मौहूर्तिका देवगणा मुहूर्तायाश्च
जज्ञिरे ।
ये वै फलं प्रयच्छन्ति भूतानां
स्वस्वकालजम् ॥ ९॥
सङ्कल्पायाश्च सङ्कल्पः कामः
सङ्कल्पजः स्मृतः ।
वसवोऽष्टौ वसोः पुत्रास्तेषां
नामानि मे श्रृणु ॥ १०॥
द्रोणः प्राणो
ध्रुवोऽर्कोऽग्निर्दोषो वसुर्विभावसुः ।
द्रोणस्याभिमतेः पत्न्या
हर्षशोकभयादयः ॥ ११॥
प्राणस्योर्जस्वती भार्या सह आयुः
पुरोजवः ।
ध्रुवस्य भार्या धरणिरसूत विविधाः
पुरः ॥ १२॥
अर्कस्य वासना भार्या
पुत्रास्तर्षादयः स्मृताः ।
अग्नेर्भार्या वसोर्धारा पुत्रा द्रविणकादयः
॥ १३॥
स्कन्दश्च कृत्तिकापुत्रो ये
विशाखादयस्ततः ।
दोषस्य शर्वरीपुत्रः शिशुमारो हरेः
कला ॥ १४॥
वसोराङ्गिरसीपुत्रो विश्वकर्मा
कृतीपतिः ।
ततो मनुश्चाक्षुषोऽभूद्विश्वे
साध्या मनोः सुताः ॥ १५॥
विभावसोरसूतोषा व्युष्टं
रोचिषमातपम् ।
पञ्चयामोऽथ भूतानि येन जाग्रति
कर्मसु ॥ १६॥
सरूपासूत भूतस्य भार्या रुद्रांश्च
कोटिशः ।
रैवतोऽजो भवो भीमो वाम उग्रो
वृषाकपिः ॥ १७॥
अजैकपादहिर्बुध्न्यो बहुरूपो
महानिति ।
रुद्रस्य पार्षदाश्चान्ये घोराः
भूतविनायकाः ॥ १८॥
प्रजापतेरङ्गिरसः स्वधा पत्नी
पितॄनथ ।
अथर्वाङ्गिरसं वेदं पुत्रत्वे
चाकरोत्सती ॥ १९॥
श्रीशुकदेव जी कहते हैं ;-
परीक्षित! तदनन्तर ब्रह्मा जी के बहुत अनुनय-विनय करने पर दक्ष
प्रजापति ने अपनी पत्नी असिक्नी के गर्भ से साठ कन्याएँ उत्पन्न कीं। वे सभी अपने
पिता दक्ष से बहुत प्रेम करती थीं। दक्ष प्रजापति ने उनमें से दस कन्याएँ धर्म को,
तेरह कश्यप को, सत्ताईस चन्द्रमा को, दो भूत को, दो अंगिरा को, दो
कृशाश्व को और शेष चार तार्क्ष्य नामधारी कश्यप को ही ब्याह दीं।
परीक्षित! तुम इन दक्ष कन्याओं और
इनकी सन्तानों के नाम मुझसे सुनो। इन्हीं की वंश परम्परा तीनों लोकों में फैली हुई
है। धर्म की दस पत्नियाँ थीं- भानु, लम्बा,
ककुभ्, जामि, विश्वा,
साध्या, मरुत्वती, वसु,
मुहूर्ता और संकल्पा। इनके पुत्रों के नाम सुनो। राजन्! भानु का
पुत्र देवऋषभ और उसका इन्द्रसेन था। लम्बा का पुत्र हुआ विद्योत और उसके मेघगण।
ककुभ् का पुत्र हुआ संकट, उसका कीकट और कीकट के पुत्र हुए
पृथ्वी के सम्पूर्ण दुर्गों (किलों) के अभिमानी देवता। जामि के पुत्र का नाम था
स्वर्ग और उसका पुत्र हुआ नन्दी। विश्वा के विश्वेदेव हुए। उनके कोई सन्तान न हुई।
साध्या से साध्यगण हुए और उनका पुत्र हुआ अर्थसिद्धि।
मरुत्वती के दो पुत्र हुए-
मरुत्वान् और जयन्त। जयन्त भगवान् वासुदेव के अंश हैं,
जिन्हें लोग उपेन्द्र भी कहते हैं। मुहूर्ता से मूहूर्त के अभिमानी
देवता उत्पन्न हुए। ये अपने-अपने मूहूर्त में जीवों को उनके कर्मानुसार फल देते
हैं। संकल्पा का पुत्र हुआ संकल्प और उसका काम। वसु के पुत्र आठों वसु हुए। उनके
नाम मुझसे सुनो। द्रोण, प्राण, ध्रुव,
अर्क, अग्नि, दोष,
वसु और विभावसु। द्रोण की पत्नी का नाम है अभिमति। उससे हर्ष,
शोक, भय आदि के अभिमानी देवता उत्पन्न हुए।
प्राण की पत्नी ऊर्जस्वती के गर्भ से सह, आयु और पुरोजव नाम
के तीन पुत्र हुए। ध्रुव की पत्नी धरणी ने अनेक नगरों के अभिमानी देवता उत्पन्न
किये। अर्क की पत्नी वासना के गर्भ से तर्ष (तृष्णा) आदि पुत्र हुए। अग्नि नामक
वसु की पत्नी धारा के गर्भ से द्रविणक आदि बहुत-से पुत्र उत्पन्न हुए। कृत्तिका
पुत्र स्कन्द भी अग्नि से ही उत्पन्न हुए। उनसे विशाख आदि का जन्म हुआ।
दोष की पत्नी शर्वरी के गर्भ से
शिशुमार का जन्म हुआ। वह भगवान् का कलावतार है। वसु की पत्नी अंगीरसी से शिल्पकला
के अधिपति विश्वकर्मा जी हुए। विश्वकर्मा के उनकी भार्या कृती के गर्भ से चाक्षुष
मनु हुए और उनके पुत्र विश्वेदेव एवं साध्यगण हुए। विभावसु की पत्नी उषा से तीन
पुत्र हुए- वयुष्ट, रोचिष् और आतप।
उनमें से आतप के पंचयाम (दिवस) नामक पुत्र हुआ, उसी के कारण
सब जीव अपने-अपने कार्यों में लगे रहते हैं। भूत की पत्नी दक्षनन्दिनी सरूपा ने
कोटि-कोटि रुद्रगण उत्पन्न किये। इनमें रैवत, अज, भव, भीम, वाम, उग्र, वृषाकपि, अजैकपाद,
अहिर्बुध्न्य, बहुरूप, और
महान्- ये ग्यारह मुख्य हैं। भूत की दूसरी पत्नी भूता से भयंकर भूत और विनायकादि
का जन्म हुआ। ये सब ग्यारहवें प्रधान रुद्र महान् के पार्षद हुए। अंगिरा प्रजापति
की प्रथम पत्नी स्वधा ने पितृगण को उत्पन्न किया और दूसरी पत्नी सती ने अथर्वंगिरस
नामक वेद को ही पुत्र रूप में स्वीकार कर लिया।
कृशाश्वोऽर्चिषि भार्यायां
धूम्रकेशमजीजनत् ।
धिषणायां वेदशिरो देवलं वयुनं मनुम्
॥ २०॥
तार्क्ष्यस्य विनता कद्रूः पतङ्गी
यामिनीति च ।
पतङ्ग्यसूत पतगान् यामिनी शलभानथ ॥
२१॥
सुपर्णासूत गरुडं
साक्षाद्यज्ञेशवाहनम् ।
सूर्यसूतमनूरुं च कद्रूर्नागाननेकशः
॥ २२॥
कृत्तिकादीनि नक्षत्राणीन्दोः
पत्न्यस्तु भारत ।
दक्षशापात्सोऽनपत्यस्तासु
यक्ष्मग्रहार्दितः ॥ २३॥
पुनः प्रसाद्य तं सोमः कला लेभे
क्षये दिताः ।
शृणु नामानि लोकानां मातॄणां शङ्कराणि
च ॥ २४॥
अथ कश्यपपत्नीनां यत्प्रसूतमिदं
जगत् ।
अदितिर्दितिर्दनुः काष्ठा अरिष्टा
सुरसा इला ॥ २५॥
मुनिः क्रोधवशा ताम्रा सुरभिः सरमा
तिमिः ।
तिमेर्यादोगणा आसन् श्वापदाः
सरमासुताः ॥ २६॥
सुरभेर्महिषा गावो ये चान्ये
द्विशफा नृप ।
ताम्रायाः श्येनगृध्राद्या
मुनेरप्सरसां गणाः ॥ २७॥
दन्दशूकादयः सर्पा राजन्
क्रोधवशात्मजाः ।
इलाया भूरुहाः सर्वे यातुधानाश्च
सौरसाः ॥ २८॥
अरिष्टायाश्च गन्धर्वाः काष्ठाया
द्विशफेतराः ।
सुता दनोरेकषष्टिस्तेषां
प्राधानिकाञ्छ्रृणु ॥ २९॥
द्विमूर्धा शम्बरोऽरिष्टो हयग्रीवो
विभावसुः ।
अयोमुखः शङ्कुशिराः स्वर्भानुः
कपिलोऽरुणः ॥ ३०॥
पुलोमा वृषपर्वा च एकचक्रोऽनुतापनः
।
धूम्रकेशो विरूपाक्षो
विप्रचित्तिश्च दुर्जयः ॥ ३१॥
स्वर्भानोः सुप्रभां कन्यामुवाह
नमुचिः किल ।
वृषपर्वणस्तु शर्मिष्ठां
ययातिर्नाहुषो बली ॥ ३२॥
वैश्वानरसुता याश्च
चतस्रश्चारुदर्शनाः ।
उपदानवी हयशिरा पुलोमा कालका तथा ॥
३३॥
उपदानवीं हिरण्याक्षः
क्रतुर्हयशिरां नृप ।
पुलोमां कालकां च द्वे वैश्वानरसुते
तु कः ॥ ३४॥
उपयेमेऽथ भगवान् कश्यपो
ब्रह्मचोदितः ।
पौलोमाः कालकेयाश्च दानवा
युद्धशालिनः ॥ ३५॥
तयोः षष्टिसहस्राणि यज्ञघ्नांस्ते
पितुः पिता ।
जघान स्वर्गतो राजन्नेक
इन्द्रप्रियङ्करः ॥ ३६॥
कृशाश्व की पत्नी अर्चि से धूम्रकेश
का जन्म हुआ और धिषणा से चार पुत्र हुए- वेदशिरा, देवल, वयुन और मनु। तार्क्ष्य नामधारी कश्यप की चार
स्त्रियाँ थीं- विनता, कद्रू, पतंगी और
यामिनी। पतंगी से पक्षियों का और यामिनी से शलभों (पतिंगों) का जन्म हुआ। विनता के
पुत्र गरुड़ हुए, ये ही भगवान् विष्णु के वाहन हैं। विनता के
ही दूसरे पुत्र अरुण हैं, जो भगवान् सूर्य के सारथि हैं।
कद्रू से अनेकों नाग उत्पन्न हुए।
परीक्षित! कृत्तिका आदि सत्ताईस
नक्षत्राभिमानिनी देवियाँ चन्द्रमा की पत्नियाँ हैं। रोहिणी से विशेष प्रेम करने
के कारण चन्द्रमा को दक्ष ने शाप दे दिया, जिससे
उन्हें क्षयरोग हो गया था। उन्हें कोई सन्तान नहीं हुई। उन्होंने दक्ष को फिर से
प्रसन्न करके कृष्ण पक्ष की क्षीण कलाओं के शुक्ल पक्ष में पूर्ण होने के वर तो
प्राप्त कर लिया, (परन्तु नक्षत्राभिमानी देवियों से उन्हें
कोई सन्तान न हुई) अब तुम कश्यप पत्नियों के मंगलमय नाम सुनो। वे लोकमाताएँ हैं।
उन्हीं से यह सारी सृष्टि उत्पन्न हुई है। उनके नाम हैं- अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा,
सुरभि, सरमा और तिमी। इसमें तिमि के पुत्र
हैं- जलचर जन्तु और सरमा के बाघ आदि हिंसक जीव। सुरभि के पुत्र हैं- भैंस, गाय तथा दूसरे दो खुर वाले पशु। ताम्रा की सन्तान हैं- बाज, गीध आदि शिकारी पक्षी। मुनि से अप्सराएँ उत्पन्न हुईं। क्रोधावेश के पुत्र
हुए- साँप, बिच्छू आदि विषैले जन्तु। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी में उत्पन्न होने वाली वनस्पतियाँ और सुरसा से यातुधान
(राक्षस)। अरिष्टा से गन्धर्व और काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न
हुए। दनु के इकसठ पुत्र हुए। उनमें प्रधान-प्रधान के नाम सुनो।
द्विमूर्धा,
शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव,
विभावसु, अयोमुख, शंकुशिरा,
स्वर्भानु, कपिल, अरुण,
पुलोमा, वृषपर्वा, एकचक्र,
अनुतापन, धूम्रकेश, विरुपाक्ष,
विप्रचित्ति और दुर्जय। स्वर्भानु की कन्या सुप्रभा से नमुचिने और
वृषपर्वा की पुत्री शार्मिष्ठा से महाबली नहुषनन्दन ययाति ने विवाह किया। दनु के
पुत्र वैश्वानर की चार सुन्दरी कन्याएँ थीं। इनके नाम थे- उपदानवी, हयशिरा, पुलोमा और कालका। इनमें से उपदानवी के साथ
हिरण्याक्ष और हयशिरा के साथ क्रतु का विवाह हुआ। ब्रह्मा जी की आज्ञा से प्रजापति
भगवान् कश्यप ने ही वैश्वानर की शेष दो पुत्रियों- पुलोमा और कालका के साथ विवाह
किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानव हुए। इन्हीं का दूसरा नाम
निवातकवच था। ये यज्ञकर्म में विघ्न डालते थे, इसलिये
परीक्षित! तुम्हारे दादा अर्जुन ने अकेले ही उन्हें इन्द्र को प्रसन्न करने के
लिये मार डाला। यह उन दिनों की बात है, जब अर्जुन स्वर्ग में
गये हुए थे।
विप्रचित्तिः सिंहिकायां शतं
चैकमजीजनत् ।
राहुज्येष्ठं केतुशतं ग्रहत्वं य
उपागतः ॥ ३७॥
अथातः श्रूयतां वंशो
योऽदितेरनुपूर्वशः ।
यत्र नारायणो देवः
स्वांशेनावातरद्विभुः ॥ ३८॥
विवस्वानर्यमा पूषा त्वष्टाथ सविता
भगः ।
धाता विधाता वरुणो मित्रः शक्र
उरुक्रमः ॥ ३९॥
विवस्वतः श्राद्धदेवं संज्ञासूयत वै
मनुम् ।
मिथुनं च महाभागा यमं देवं यमीं तथा
।
सैव भूत्वाथ बडवा नासत्यौ सुषुवे
भुवि ॥ ४०॥
छाया शनैश्चरं लेभे सावर्णिं च मनुं
ततः ।
कन्यां च तपतीं या वै वव्रे संवरणं
पतिम् ॥ ४१॥
अर्यम्णो मातृका पत्नी तयोश्चर्षणयः
सुताः ।
यत्र वै मानुषी जातिर्ब्रह्मणा
चोपकल्पिता ॥ ४२॥
पूषानपत्यः पिष्टादो
भग्नदन्तोऽभवत्पुरा ।
योऽसौ दक्षाय कुपितं जहास
विवृतद्विजः ॥ ४३॥
त्वष्टुर्दैत्यानुजा भार्या रचना
नाम कन्यका ।
सन्निवेशस्तयोर्जज्ञे विश्वरूपश्च
वीर्यवान् ॥ ४४॥
तं वव्रिरे सुरगणा स्वस्रीयं
द्विषतामपि ।
विमतेन परित्यक्ता गुरुणाङ्गिरसेन
यत् ॥ ४५॥
विप्रचित्ति की पत्नी सिंहिका के
गर्भ से एक सौ एक पुत्र उत्पन्न हुए। उनमें सबसे बड़ा था राहु,
जिसकी गणना ग्रहों में हो गयी। शेष सौ पुत्रों का नाम केतु था।
परीक्षित! अब क्रमशः अदिति की वंश
परम्परा सुनो। इस वंश में सर्वव्यापक देवाधिदेव नारायण ने अपने अंश से वामन रूप
में अवतार लिया था। अदिति के पुत्र थे- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा,
सविता, भग, धाता,
विधाता, वरुण, मित्र,
इन्द्र और त्रिविक्रम (वामन)। यही बारह आदित्य कहलाये।
विवस्वान् की पत्नी महाभाग्यवती
संज्ञा के गर्भ से श्राद्धदेव (वैवस्वत) मनु एवं यम-यमी का जोड़ा पैदा हुआ! संज्ञा
ने ही घोड़ी का रूप धारण करके भगवान् सूर्य के द्वारा भूलोक में दोनों
अश्विनीकुमारों को जन्म दिया।
विवस्वान् की दूसरी पत्नी थी छाया।
उसके शनैश्चर और सावर्णि मनु नाम के दो पुत्र तथा तपती नाम की एक कन्या उत्पन्न
हुई। तपती ने संवरण को पति रूप में वरण किया। अर्यमा की पत्नी मातृका थी। उसके
गर्भ से चर्षणी नामक पुत्र हुए। वे कर्तव्य-अकर्तव्य के ज्ञान से युक्त थे। इसलिये
ब्रह्मा जी ने उन्हीं के आधार पर मनुष्य जाति की (ब्राह्मणादि वर्णों की) कल्पना
की। पूषा के कोई सन्तान न हुई।
प्राचीन काल में जब शिव जी दक्ष पर
क्रोधित हुए थे, तब पूषा दाँत दिखाकर हँसने लगे
थे; इसलिये वीरभद्र ने इनके दाँत तोड़ दिये थे। तब से पूषा
पिसा हुआ अन्न ही खाते हैं। दैत्यों की छोटी बहिन कुमारी रचना त्वष्टा की पत्नी
थी। रचना के गर्भ से दो पुत्र हुए- संनिवेश और पराक्रम विश्वरूप। इस प्रकार
विश्वरूप यद्यपि शत्रुओं के भानजे थे, फिर भी जब देवगुरु
बृहस्पतिजी ने इन्द्र से अपमानित होकर देवताओं का परित्याग कर दिया, तब देवताओं ने विश्वरूप को ही अपना पुरोहित बनाया था।
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे
पारमहंस्यां संहितायां षष्ठस्कन्धे षष्ठोऽध्यायः ॥ ६॥
शेष जारी-आगे पढ़े............... षष्ठ स्कन्ध: सप्तमोऽध्यायः
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