विष्णु पुराण
विष्णु पुराण महर्षि वशिष्ठ के
पौत्र पराशर ऋषि द्वारा रचित है। यह एक वैष्णव महापुराण है,
यह सब पातकों का नाश करने वाला है। इस पुराण में इस समय सात हजार
श्लोक उपलब्ध हैं। वैसे कई ग्रन्थों में इसकी श्लोक संख्या तेईस हजार बताई जाती
है। यह पुराण छह अंशों में विभाजित है और इसमें भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों,
उनकी लीलाओं, सृष्टि की उत्पत्ति, प्रलय, धर्म, कर्म, और मोक्ष जैसे विषयों का विस्तार से वर्णन है।
श्रीविष्णु पुराण पूर्व भाग-प्रथम अंश
इसके पूर्वभाग में शक्ति नन्दन
पराशर ने मैत्रेय को छ: अंश सुनाये है, उनमें
प्रथम अंश में इस पुराण की अवतरणिका दी गयी है। आदि कारण सर्ग देवता आदि जी
उत्पत्ति समुद्र मन्थन की कथा दक्ष आदि के वंश का वर्णन ध्रुव तथा पृथु का चरित्र
प्राचेतस का उपाख्यान प्रहलाद की कथा और ब्रह्माजी के द्वारा देव तिर्यक मनुष्य
आदि वर्गों के प्रधान प्रधान व्यक्तियो को पृथक पृथक राज्याधिकार दिये जाने का
वर्णन इन सब विषयों को प्रथम अंश कहा गया है।
विष्णुपुराणम् प्रथमांशः
अध्यायः १ अध्यायः २ अध्यायः ३ अध्यायः ४
अध्यायः ५ अध्यायः ६ अध्यायः ७ अध्यायः ८
अध्यायः ९ अध्यायः १० अध्यायः ११ अध्यायः
१२
अध्यायः १३ अध्यायः १४ अध्यायः १५ अध्यायः
१६
अध्यायः १७ अध्यायः १८ अध्यायः १९ अध्यायः
२०
अध्यायः २१ अध्यायः २२
श्रीविष्णु पुराण पूर्व भाग-द्वितीय अंश
प्रियव्रत के वंश का वर्णन द्वीपों
और वर्षों का वर्णन पाताल और नरकों का कथन, सात स्वर्गों का निरूपण अलग अलग लक्षणों से युक्त सूर्यादि ग्रहों की गति
का प्रतिपादन भरत चरित्र मुक्तिमार्ग निदर्शन तथा निदाघ और ऋभु का संवाद ये सब
विषय द्वितीय अंश के अन्तर्गत कहे गये हैं।
श्रीविष्णुपुराणम्-द्वितीयांशः
अध्यायः १ अध्यायः २ अध्यायः ३ अध्यायः ४
अध्यायः ५ अध्यायः ६ अध्यायः ७ अध्यायः ८
अध्यायः ९ अध्यायः १० अध्यायः ११ अध्यायः
१२
अध्यायः १३ अध्यायः १४ अध्यायः १५ अध्यायः
१६
श्रीविष्णु पुराण पूर्व भाग-तीसरा अंश
मन्वन्तरों का वर्णन वेदव्यास का
अवतार, तथा इसके बाद नरकों से उद्धार
का वर्णन कहा गया है। सगर और और्ब के संवाद में सब धर्मों का निरूपण श्राद्धकल्प
तथा वर्णाश्रम धर्म सदाचार निरूपण तथा माहामोह की कथा, यह सब
तीसरे अंश में बताया गया है, जो पापों का नाश करने वाला है।
श्रीविष्णुपुराणम्-तृतीयांशः
अध्यायः १ अध्यायः २ अध्यायः ३ अध्यायः ४
अध्यायः ५ अध्यायः ६ अध्यायः ७ अध्यायः ८
अध्यायः ९ अध्यायः १० अध्यायः ११ अध्यायः
१२
अध्यायः १३ अध्यायः १४ अध्यायः १५ अध्यायः
१६
अध्यायः १७ अध्यायः १८
श्रीविष्णु पुराण पूर्व भाग-चतुर्थ
अंश
सूर्यवंश की पवित्र कथा,
चन्द्रवंश का वर्णन तथा नाना प्रकार के राजाओं का वृतान्त चतुर्थ
अंश के अन्दर है।
श्रीविष्णुपुराणम्- चतुर्थांशः
अध्यायः १ अध्यायः २ अध्यायः ३ अध्यायः ४
अध्यायः ५ अध्यायः ६ अध्यायः ७ अध्यायः ८
अध्यायः ९ अध्यायः १० अध्यायः ११ अध्यायः
१२
अध्यायः १३ अध्यायः १४ अध्यायः १५ अध्यायः
१६
अध्यायः १७ अध्यायः १८ अध्यायः १९ अध्यायः
२०
अध्यायः २१ अध्यायः २२ अध्यायः २३ अध्यायः
२४
श्रीविष्णु पुराण पूर्व भाग-पंचम
अंश
श्रीकृष्णावतार विषयक प्रश्न,
गोकुल की कथा, बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण
द्वारा पूतना आदि का वध, कुमारावस्था में अघासुर आदि की
हिंसा, किशोरावस्था में कंस का वध, मथुरापुरी
की लीला, तदनन्तर युवावस्था में द्वारका की लीलायें समस्त
दैत्यों का वध, भगवान के प्रथक प्रथक विवाह, द्वारका में रहकर योगीश्वरों के भी ईश्वर जगन्नाथ श्रीकृष्ण के द्वारा
शत्रुओं के वध के द्वारा पृथ्वी का भार उतारा जाना, और अष्टावक्र
जी का उपाख्यान ये सब बातें पांचवें अंश के अन्तर्गत हैं।
श्रीविष्णुपुराणम्-पञ्चमांशः
अध्यायः १ अध्यायः २ अध्यायः ३ अध्यायः ४
अध्यायः ५ अध्यायः ६ अध्यायः ७ अध्यायः ८
अध्यायः ९ अध्यायः १० अध्यायः ११ अध्यायः
१२
अध्यायः १३ अध्यायः १४ अध्यायः १५ अध्यायः
१६
अध्यायः १७ अध्यायः १८ अध्यायः १९ अध्यायः
२०
अध्यायः २१ अध्यायः २२ अध्यायः २३ अध्यायः
२४
अध्यायः २५ अध्यायः २६ अध्यायः २७ अध्यायः
२८
अध्यायः २९ अध्यायः ३० अध्यायः ३१ अध्यायः
३२
अध्यायः ३३ अध्यायः ३४ अध्यायः ३५ अध्यायः
३६
अध्यायः ३७ अध्यायः ३८
श्रीविष्णु पुराण पूर्व भाग-छठा अंश
कलियुग का चरित्र चार प्रकार के
महाप्रलय तथा केशिध्वज के द्वारा खाण्डिक्य जनक को ब्रह्मज्ञान का उपदेश इत्यादि
छठा अंश कहा गया है।
श्रीविष्णुपुराणम्- षष्टांशः
अध्यायः १ अध्यायः २ अध्यायः ३ अध्यायः ४
अध्यायः ५ अध्यायः ६ अध्यायः ७ अध्यायः ८
श्रीविष्णु पुराण उत्तरभाग
इसके बाद विष्णु पुराण का उत्तरभाग प्रारम्भ होता है, जिसमें शौनक आदि के द्वारा आदरपूर्वक पूछे जाने पर सूतजी ने सनातन विष्णुधर्मोत्तर नामसे प्रसिद्ध नाना प्रकार के धर्मों कथायें कही है, अनेकानेक पुण्यव्रत यम नियम धर्मशास्त्र अर्थशास्त्र वेदान्त ज्योतिष वंशवर्णन के प्रकरण स्तोत्र मन्त्र तथा सब लोगों का उपकार करने वाली नाना प्रकार की विद्यायें सुनायी गयीं है, यह विष्णुपुराण है, जिसमें सब शास्त्रों के सिद्धान्त का संग्रह हुआ है। इसमे वेदव्यासजी ने वाराकल्प का वृतान्त कहा है, जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है, वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है।
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