विष्णु पुराण प्रथम अंश अध्याय १०
विष्णु पुराण के प्रथम अंश के अध्याय
१० में भृगु, अग्नि और अग्निष्वात्तादि
पितरों की सन्तान का वर्णन है।
विष्णु पुराण प्रथम अंश अध्याय १०
Vishnu Purana first part chapter
10
विष्णुपुराणम् प्रथमांशः दशमोऽध्यायः
विष्णुपुराणम्/प्रथमांशः/अध्यायः १०
श्रीविष्णुपुराण प्रथम अंश दसवाँ अध्याय
श्रीमैत्रेय उवाचं
कथितं मे त्वया सर्वं यत्पृष्टोऽसि
मया मुने ।
भृगुसर्गात्प्रभृत्येष सर्गो मे
कथ्यतां पुनः ॥१॥
श्रीमैत्रेयजी बोले- हे मुने !
मैंने आपसे जो कुछ पूछा था वह सब आपने वर्णन कियाः अब भृगुजीकी सन्तानसे लेकर
सम्पूर्ण सृष्टिका आप मुझसे फिर वर्णन कीजिये ॥१॥
श्रीपराशर उवाच
भृगोः ख्यात्यां समुप्तन्ना
लक्ष्मीर्विष्णुपरिग्रहः ।
तथा धातृविधातारौ ख्यात्यां जातौ
सुतौ भृगोः ॥२॥
आयतिर्नियतिश्चैव मेरोः कन्ये
महात्मनः ।
भार्ये धातृविधात्रोस्ते तयोर्जातौ
सुतावुभौ ॥३॥
प्राणश्चैव मृकण्डुश्च मार्कण्डेयो
मृकण्डुतः ।
ततो वेदशिरा जज्ञे प्राणस्यापि सुतं
श्रृणु ॥४॥
प्राणस्य द्युतिमान्पुत्रो
राजवांश्च ततोऽभवत् ।
ततो वंशो महाभाग विस्तरं भार्गवो
गतः ॥५॥
श्रीपराशरजी बोले- भृगुजीके द्वारा ख्यातिसे विष्णुपत्नी लक्ष्मीजी और धाता, विधाता नामक दो पुत्र उप्तन्न हुए।महात्मा मेरुकी आयति और नियतिनाम्री कन्याएँ धाता और विधाताकी स्त्रियाँ थीं; उनसे उनके प्राण और मृकण्ड नामक दो पुत्र हुए । मृकण्डुसे मार्कण्डेय और उनसे वेदशिराका जन्म हुआ । अब प्राणकी सन्तानका वर्णन सुनो। प्राणका पुत्र द्युतिमान् और उसका पुत्र राजवान् हुआ । हे महाभाग । उस राजवानसे फिर भृगुंवंशका बड़ा विस्तार हुआ ॥२-५॥
पत्नी मरीचेः सम्भूतिः
पौर्णिमासमसूयत ।
विरजाः पर्वतश्चैव तस्य पुत्रौ
महात्मनः ॥६॥
वंशसंकीर्तने पुत्रान्वदिष्येऽहं ततो
द्विज ।
स्मृतिश्चांगिरसः पत्नी प्रसूता
कन्यकास्तथा ।
सिनीवाली कुहूश्चैव राका
चानुमतिस्तथा ॥७॥
अनसूया तथैवात्रेर्जज्ञे
निष्कल्मषान्सुतान् ।
सोमं दुर्वाससं चैव दत्तात्रेयं च
योगिनम् ॥८॥
प्रीत्यां पुलस्त्यभार्यायां
दत्तोलिस्तत्सुतोऽन्सुतान् ।
पूर्वजन्मनि योऽगस्त्यः स्मृतः
स्वायम्भूवेऽन्तरे ॥९॥
कर्मदश्चौर्वरीयांश्च सहिष्णुश्च
सुतास्त्रयः ।
क्षमा तु सुषुवे भार्या पुलहस्य
प्रजापतेः ॥१०॥
मरिचिकी पन्ती सम्भूतिने पौर्णमासको उप्तन्न किया । उस महात्माके विरजा और पर्वत दो पुत्र थे। हे द्विज ! उनके वंशका वर्णन करते समय मैं उन दोनोंकी सन्तानका वर्णन करुँगा । अंगिराकी नामकी कन्याएँ , हुई । अत्रिकी भार्या अनसूयाने चन्द्रमा, दुर्वासा और योगी दत्तात्रेय इन निष्पाप पुत्रोंको जन्म दिया। पुलस्त्यकी स्त्री प्रीतिसे दत्तोलिका जन्म हुआ जो अपने पूर्व जन्ममें स्वायम्भुव मन्वन्तरमें अगस्त्य कहा जाता था। प्रजापति पुलहकी पत्नी क्षमासे कर्दम, उर्वरीयान् और सहिष्णु ये तीन पुत्र हुए ॥६-१०॥
क्रतोश्च सन्तातिर्भायां
वालखिल्यानसूयत ।
षष्टिपुत्रसहस्त्राणि
मुनीनामूर्ध्वरेतसाम् ।
अंगष्ठपर्वमात्राणां
ज्वलभ्दास्करतेजसाम् ॥११॥
ऊर्जायां तु वसिष्ठस्य सप्ताजायन्त
वै सुताः ॥१२॥
रजो गोत्रोर्द्धवबाहूश्व
सवनश्चानघस्तथा ।
सुतपाः शुक्र इत्येते सर्वे
सप्तर्षयोऽमलाः ॥१३॥
क्रतुकी सन्ताति नामकः भार्याने अँगूठेके पोरुओंके समान शरीरवाले तथा प्रखर सूर्यके समान तेजस्वी वालखिल्यादि साठ हजार ऊर्ध्वरेता मुनियोंको जन्म दिया । वसिष्ठकी ऊर्जा नामक स्त्रीसे रज, गोत्र, ऊर्ध्वबाहु, सवन, अनघ, सुतपा और शुक्र ये सात पुत्र उप्तन्न हुए । ये निर्मल स्वभाववाले समस्त मुनिगण ( तीसरे मन्वन्तरमें ) सप्तर्षि हुए ॥११-१३॥
योऽसावग्न्यभिमानी स्याद
ब्रह्माणस्तनयोऽग्रज् ।
तस्मात्स्वाहा सुताँल्लेभे
त्रीनुदारौजसो द्विज ॥१४॥
पावकं पवमानं तु शुचिं चापि
जलाशिनम् ॥१५॥
हे द्विज ! अग्निका अभिमानी देव,
जो ब्रह्माजीका ज्येष्ठ पुत्र है, उसके द्वारा
स्वाहा नामक पत्नीसे अति तेजस्वी पावक, पवमान और जलको भक्षण
करनेवाला शूचि ये तीन पुत्र हुए ॥१४-१५॥
तेषां तु सन्ततावन्ये चत्वारिंशच्च
पत्र्च च ।
कथ्यन्ते वह्नयश्चैते
पितापुत्रत्रयं च यत् ॥१६॥
एवमेकोनपत्र्चाशद्वह्नयः
परिकीर्तिताः ॥१७॥
इन तीनोंके ( प्रत्येकके पन्द्रह
पन्द्रह पुत्रके क्रमसे ) पैंतालीस सन्तान हुईं । पिता अग्नि और उसके तीन पुत्रोंको
मिलाकर ये सब अग्नि ही कहलाते हैं । इस प्रकार कुल उनचास (४९) अग्नि कहे गये हैं
॥१६-१७॥
पितरो ब्रह्मणा सृष्टा व्याख्याता
ये मजा द्विज ।
अग्निष्वात्ता बर्हिषदोऽनग्नयः
साग्नयश्च ये ॥१८॥
तेभ्यः स्वधा सुते जज्ञे मेनां वै
धारिणीं तथा ।
ते उभे ब्रह्मवादिन्यौ योगिन्यावप्युभे
द्विज ॥१९॥
उत्तमज्ञानसम्पन्ने सर्वैः
समुदितैर्गुणैः ॥२०॥
हे द्विज ! ब्रह्माजीद्वारा रचे गये
जिन अनग्निक अग्निष्वात्ता और साग्निक बर्ह्माजीद्वारा रचे गये जिन अनाग्निक
अग्निष्वात्ता और साग्निक बर्हिषद् आदि पतिरोंके विषयमें तुमसे कहा था । उनके द्वारा
स्वधाने मेना और धारिणी नामक दो कन्याएँ उप्तन्न कीं । वे दोनों ही उत्तम ज्ञानसे
सम्पन्न और सभी गुणोंसे युक्त ब्रह्मावादिनी तथा योगिनी थीं ॥१८-२०॥
इत्येषा दक्षकन्यानां
कथितापत्यसन्तातिः ।
श्रद्धावान्संस्मरन्नेतामनत्यो न
जायते ॥२१॥
इस प्रकार यह दक्षकन्याओंकी
वंशपरम्पराका वर्णन किया । जो कोई श्रद्धापूर्वक इसका स्मरण करता है वह निःसन्तान
नहीं रहता ॥२१॥
इति श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेंऽशे
दशमोऽध्यायः ॥१०॥
आगे जारी........ श्रीविष्णुपुराण अध्याय 11
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