विष्णु पुराण प्रथम अंश अध्याय १६

विष्णु पुराण प्रथम अंश अध्याय १६        

विष्णु पुराण के प्रथम अंश के अध्याय १६ में नृसिंहावतार विषयक प्रश्न का वर्णन है।

विष्णु पुराण प्रथम अंश अध्याय १६

विष्णु पुराण प्रथम अंश अध्याय १६        

Vishnu Purana first part chapter 16  

विष्णुपुराणम् प्रथमांशः षोडशोऽध्यायः  

विष्णुपुराणम्/प्रथमांशः/अध्यायः १६    

श्रीविष्णुपुराण प्रथम अंश सोलहवाँ अध्याय

मैत्रेय उवाच ।

कथितो भवता वंशो मानवानां महामुने ।

काणञ्चास्य जगतो विष्णुरेव सनातनः ।। १ ।।

यच्चैतदू भगवानाह प्रह्लादं दैत्यसत्तमम् ।

ददाह नाग्निर्नस्त्रैश्व क्षण्णस्तत्याज जीवितम् ।। २ ।।

जगाम वसुधा क्षोभं प्रह्लादे सलिले स्थिते ।

बन्धबद्ध विचलति विक्षिप्ताङू गैः समाहता ।। ३ ।।

शैलैराक्रान्तदेहोऽपि न ममार च यः पुरा ।

त्वयैवातीव माहात्म्यां कथितं यस्य धीमतः ।। ४ ।।

तस्य प्रभावमतुलं विष्णोर्भक्तिमतो मुने ।

श्वोतुमिच्छामि यस्योतच्चरितं दीप्ततेजसः ।। ५ ।।

किं निमित्तमसौ शस्त्रैर्विक्षतो दितिजैर्मुने ।

किममर्थञ्चाब्धिसलिले निक्षिप्ते धर्म्मतत्परः ।। ६ ।।

आक्रान्तः पर्व्वतैः कस्मात् कस्मादृष्टो महोरगैः ।

क्षिप्तः किमद्रिशिखरात् किं वा पावकसञ्चये ।। ७ ।।

दिग्दन्तिनां दन्तबूमिं स च कस्मान्नरूपितः ।

संशोषकोऽनिलश्चास्य प्रयुक्तः किं मुहासुरैः ।। ८ ।।

कृत्याञ्च दैत्यगुरवो युयुजुस्तत्र किं मुने ।

शम्बरश्चापि मायानां सहस्त्रं कि प्रयुक्तवान् ।। ९ ।।

हालाहलं विषमहो दैत्यसूदैर्महात्मनः ।

कस्माद् दत्त विनाशाय यद जीर्णा तेन धीमता ।। १० ।।

श्रीमैत्रेयजी बोले ;– आपने महात्मा मनुपुत्रों के वंशों का वर्णन किया और यह भी बताया कि इस जगत के सनातन कारण भगवान विष्णु ही है || || किन्तु, भगवन ! आपने जो कहा कि दैत्यश्रेष्ठ प्रल्हादजी को न तो अग्नि ने ही भस्म किया और न उन्होंने अस्त्र-शस्त्रों से आघात किये जानेपर ही अपने प्राणों को छोड़ा || || तथा पाशबद्ध होकर समुद्र के जल में पड़े रहनेपर उनके हिलते-डुलते हुए अंगों से आहत होकर पृथ्वी डगमगाने लगी || || और शरीरपर पत्थरों की बौछार पड़नेपर भी वे नहीं मरे | इसप्रकार जिन महाबुद्धिमान का आपने बहुत ही माहात्म्य वर्णन किया है || || हे मुने ! जिन अति तेजस्वी माहात्मा के ऐसे चरित्र है, मैं उन परम विष्णुभक्तका अतुलित प्रभाव सुनना चाहता हूँ || || हे मुनिवर ! वे तो बड़े ही धर्मपरायण थे; फिर दैत्यों ने उन्हें क्यों अस्त्र-शस्त्रों से पीड़ित किया और क्यों समुद्र के जल में डाला ? || || उन्होंने किसलिये उन्हें पर्वतों से दबाया ? किस कारण सर्पों से डंसाया ? क्यों पर्वतशिखर से गिराया और क्यों अग्नि से डलवाया ? || || उन महादैत्यों ने उन्हें दिग्गजों के दाँतों से क्यों रूँधवाया और क्यों सर्वशोषक वायु को उनके लिये नियुक्त किया ? || || हे मुने ! उनपर दैत्यगुरुओं ने किसलिये कृत्या का प्रयोग किया और शम्बरासुर ने क्यों अपनी सहस्त्रो मायाओं का वार किया ? || || उन महात्मा को मारने के लिये दैत्यराज के रसोइयों ने, जिसे वे महाबुद्धिमान पचा गये थे ऐसा हलाहल विष क्यों दिया ? || १० || 

एतत् सर्व्वं महाभाग प्रह्लादस्य महात्मनः ।

चरितं श्वोतुमिच्छामि महामाहात्म्यसूचकम् ।। ११ ।।

न हि कौतूहलं तत्र यदू दैत्यैर्न हतो हि सः ।

अनन्यमनसो विष्णौ कः शक्नोति निपातने ।। १२ ।।

तस्मिन धर्म्मपरे नित्यं केशावरधानोद्य.ते ।

स्ववंशप्रभवैर्दैत्येः कर्त्तु द्रषोऽतिदुष्करः ।। १३ ।।

दर्‌म्मात्मनि महाभागे विष्णुभक्ते विमत्सरे ।

दैतेयैः प्रह्टतं यस्मात् तन्ममाख्यातुमर्हसि ।। १४ ।।

हे महाभाग ! महात्मा प्रल्हाद का यह सम्पूर्ण चरित्र, जो उनके महान माहात्म्य का सूचक है, मैं सुनना चाहता हूँ || ११ || यदि दैत्यगण उन्हें नही मार सके तो इसका मुझे कोई आश्चर्य नही है, क्योंकि जिसका मन अनन्यभाव से भगवान विष्णु में लगा हुआ है उसको भला कौन मार सकता है ? || १२ || जो नित्यधर्मपरायण और भगवदाराधना में तत्पर रहते थे, उनसे उनके ही कुल में उत्पन्न हुए दैत्यों ने ऐसा अति दुष्कर द्वेष किया ! || १३ || उन धर्मात्मा, महाभाग, मत्सरहीन विष्णु-भक्त को दैत्योंने किस कारण से इतना कष्ट दिया, सो आप मुझसे कहिये || १४ ||

प्रहरन्ति महात्मानो विपक्षा अपि नेदृशे ।

गुणौः समन्विते साचधौ किं पुनयः खपक्षजः ।। १५ ।।

तदेतत् कथ्यतां सर्व्व विस्तरान्मुनिसत्तम ।

दैत्येश्वरस्य चरितं श्वोतुमिच्छाम्यशेषतः ।। १६ ।।

महात्मालोग तो ऐसे गुण-सम्पन्न साधू पुरुषों के विपक्षी होनेपर भी उनपर किसी प्रकार का प्रहार नहीं करते, फिर स्वपक्ष में होनेपर तो कहना ही क्या है ? || १५ || इसलिये हे मुनिश्रेष्ठ ! यह सम्पूर्ण वृतांत विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये | मैं उन दैत्यराज का सम्पूर्ण चरित्र सुनना चाहता हूँ || १६ ||

इति श्रीविष्णुपुराणे प्रथमांऽशे षोडशोऽध्याय।। १६ ।।

आगे जारी........ श्रीविष्णुपुराण अध्याय 17 

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