नरसिंहपुराण अध्याय २३

नरसिंहपुराण अध्याय २३  

नरसिंहपुराण अध्याय २३ में चौदह मन्वन्तरों का वर्णन है।

नरसिंहपुराण अध्याय २३

श्रीनरसिंहपुराण अध्याय २३  

Narasingha puran chapter 23

नरसिंह पुराण तेईसवाँ अध्याय

नरसिंहपुराण अध्याय २३    

श्रीनरसिंहपुराण त्रयोविंशतितमोऽध्यायः   

॥ॐ नमो भगवते श्रीनृसिंहाय नमः॥

नरसिंहपुराण

अध्याय २३

सूत उवाच

प्रथमं तावत् स्वायम्भुवं मन्वन्तरं तत्स्वरुपं कथितम् ।

सर्गादौ स्वारोचिषो नाम द्वितीयो मनुः ॥१॥

तस्मिन् स्वारोचिषे मन्वन्तरे विपश्चिन्नाम देवेन्द्रः ।

पारावताः सतुषिता देवाः ॥२॥

ऊर्जस्तम्बः सुप्राणो दन्तो निऋषभो वरीयानीश्वरः

सोमः सप्तर्षयश्चैवम् किम्पुरुषाद्याः स्वारोचिषस्य

मनोः पुत्रा राजानो भवन्ति ॥३॥

तृतीय उत्तमो नाम मनुः । सुधामानः सत्याः

शिवाः प्रतर्दना वंशवर्तिनश्च देवाः ।

पञ्चैते द्वादशगणाः ॥४॥

तेषां सुशान्तिरिन्द्रः ॥५॥

वन्द्याः सप्तर्षयोऽभवन् ।

अत्र परशुचित्राद्या मनोः सुताः ॥६॥

चतुर्थस्तामसो नाम मनुः । तत्र मन्वन्तरे सुराः पराः

सत्याः सुधियश्च सप्तविंशतिका गणाः ॥७॥

तत्र भुशुण्डी नाम देवेन्द्रः । हिरण्यरोमा

देवश्रीरुर्ध्वबाहुर्देवबाहुः सुधामा ह पर्जन्यो

मुनिरित्येते सप्तर्षयः ॥८॥

ज्योतिर्धामा पृथुः काश्योऽग्निर्धनक इत्येते

तामसस्य मनोः पुत्रा राजानः ॥९॥

पञ्चमो नाम रैवतो मनुः । तस्यान्तरेऽमिता निरता

वैकुण्ठाः सुमेधस इत्येते देवगणाश्चतुर्दशका गणाः ।

असुरान्तको नाम देवेन्द्रः ।

सप्तकाद्या मनोः सुता राजानो वै बभूवुः ॥१०॥

शान्तः शान्तभयो विद्वांस्तपस्वी मेधावी

सुतपाः सप्तर्षयोऽभवन् ॥११॥

षष्ठश्चाक्षुषो नाम मनुः ।

पुरुशतद्युम्नप्रमुखास्तस्य सुता राजानः ।

सुशान्ता आप्याः प्रसूता भव्याः प्रथिताश्च

महानुभावा लेखाद्याः पञ्चैते ह्यष्टका

गणास्तत्र देवाः ॥१२॥

तेषामिन्द्रो मनोजवः । मेधाः सुमेधा विरजा

हविष्पानुत्तमो मतिमान्नाम्ना सहिष्णुश्चैते सप्तर्षयः ॥१३॥

सप्तमो वैवस्वतो मनुः साम्प्रतं वर्तते ।

तस्य पुत्रा इक्ष्वाकुप्रभृतयः क्षत्रिया भूभुजः ॥१४॥

आदित्यविश्ववसुरुद्राद्या देवाः पुरंदरोऽत्र देवेन्द्रः ॥१५॥

वसिष्ठः कश्यपोऽत्रिर्जमदग्निर्गौतम

विश्वामित्रभरद्वाजाः सप्तर्षयो भवन्ति ॥१६॥

सूतजी बोले - प्रथम 'स्वायम्भुव' मन्वन्तर है, उसका स्वरुप पहले बतलाया जा चुका है । सृष्टि के आदिकाल में 'स्वारोचिष' नामक द्वितीय मनु हुए थे । उस समय के देवता 'पारावत' और 'तुषित' नाम से प्रसिद्ध थे । ऊर्जस्तम्ब, सुप्राण, दन्त, निऋषभ, वरीयान्, ईश्वर और सोम - ये उस मन्वन्तर में सप्तर्षि थे । इसी प्रकार 'स्वारोचिष' मनु के किम्पुरुष आदि पुत्र उन दिनों भूमण्डल के राजा थे । तृतीय मनु 'उत्तम' नाम से प्रसिद्ध हुए । उनके समय में सुधामा, सत्य, शिव, प्रतर्दन और वंशवर्ती (अथवा वशवर्ती) - ये पाँच देवगण थे । इनमें से प्रत्येक गण में बारह- बारह व्यक्ति थे । इन देवताओं के इन्द्र का नाम था - 'सुशान्ति' । उन दिनों जो सप्तर्षि थे, उनकी 'वन्द्य' संज्ञा थी । इस मन्वन्तरन्में 'परशु' और 'चित्र' आदि मनुपुत्र राजा थे । चौथे मनु का नाम था 'तामस' । उनके मन्वन्तर में देवताओं के पर, सत्य और सुधी नामवाले गण थे । इनमें से प्रत्येक गण में सत्ताईस- सत्ताईस देवता थे । इन देवताओं के राजा इन्द्र का नाम था - 'भुशुण्डी' । उस समय हिरण्यरोमा, देवश्री, ऊर्ध्वबाहु, देवबाहु, सुधामा, पर्जन्य और मुनि - ये सप्तर्षि थे । ज्योतिर्धाम, पृथु, काश्य, अग्नि और धनक - ये तामस मनु के पुत्र इस भूमण्डल के राजा थे । पाँचवें मनु का नाम था - 'रैवत' । उनके मन्वन्तर में अमित, निरत, वैकुण्ठ और सुमेधा - ये देवताओं के गण थे । इनमें से प्रत्येक गण में चौदह- चौदह व्यक्ति थे । इन देवताओं के जो इन्द्र थे, उनका नाम था - 'असुरान्तक' । उस समय सप्तक आदि मनुपुत्र भूतल के राजा थे । शान्त, शान्तमय, विद्वान्, तपस्वी, मेधावी और सुतपा - ये सप्तर्षि थे । छठे मनु का नाम 'चाक्षुष' था । उनके समय में पुरु और शतद्युम्र आदि मनुपुत्र राजा थे । उस समय अत्यन्त शान्त रहनेवाले लेख, आप्य, प्रसूत, भव्य और प्रथित - ये पाँच महानुभाव देवगण थे । इन पाँचों गणों में आठ- आठ व्यक्ति थे । इनके इन्द्र का नाम 'मनोजव' था । उन दिनों मेधा, सुमेधा, विरजा, हविष्मान्, उत्तम, मतिमान् और सहिष्णु - ये सप्तर्षि थे । सातवें मनु को 'वैवस्वत' कहते हैं, जो इस समय वर्तमान हैं । इनके इक्ष्वाकु आदि क्षत्रियजातीय पुत्र भूपाल हुए । इस मन्वन्तर में आदित्य, विश्ववसु और रुद्र आदि देवगण हैं और 'पुरंदर' इनके इन्द्र हैं । वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भरद्वाज - ये इस मन्वन्तर के सप्तर्षि हैं ॥१ - १६॥

भविष्याणि मन्वन्तराणि कथ्यन्ते ।

तद्यथा आदित्यात् संज्ञायां जातो यो मनुः

पूर्वोक्तश्छायायामुत्पन्नो मनुर्द्वितीयः स तु ।

पूर्वजस्य सावर्णस्य मन्वन्तरं सावर्णिकमष्टमं श्रृणु ॥१७॥

मनुः सावर्णोऽष्टमो भविता तत्र सुतपाद्या

देवगणास्तेषां बलिरिन्द्रो भविता ॥१८॥

दीप्तिमान् गालवो नामा कृपद्रौणिव्यास

ऋष्यश्रृङ्गाश्च सप्तर्षयो भवितारः ।

विराजोर्वरीयनिर्मोकाद्याः सावर्णस्य मनोः

सुता राजानो भविष्यन्ति ॥१९॥

नवमो दक्षसावर्णिमनुर्भविता ।

धृतिः कीर्तिर्दीप्तिः केतुः पञ्चहस्तो निरामयः

पृथुश्रवाद्या दक्षसावर्णा राजानोऽस्य मनोः पुत्राः ॥२०॥

मरीचिगर्भाः सुधर्माणो हविष्मन्तस्तत्र देवताः ।

तेषामिन्द्रोऽद्भुतः ॥२१॥

सवनः कृतिमान् हव्यो वसुमेधातिथि

र्ज्योतिष्मानित्येते सप्तर्षयः ॥२२॥

दशमो ब्रह्मसावर्णिर्मनुर्भविता ।

विरुद्धादयस्तत्र देवाः । तेषां शान्तिरिन्द्रः ।

हविष्मान् सुकृतिः सत्यस्तपोमूर्तिर्नाभागः

प्रतिमोकः सप्तकेतुरित्येते सप्तर्षयः ॥२३॥

सुक्षेत्र उत्तमो भूरिषेणादयो

ब्रह्मसावर्णिपुत्रा राजानो भविष्यन्ति ॥२४॥

एकादशे मन्वन्तरे धर्मसावर्णिको मनुः ॥२५॥

सिंहसवनादयो देवगणाः ।

तेषां दिवस्पतिरिन्द्रः ॥२६॥

निर्मोहस्तत्त्वदर्शी निकम्पो निरुत्साहो

धृतिमान् रुच्य इत्येते सप्तर्षयः ।

चित्रसेनविचित्राद्या धर्मसावर्णिपुत्रा

भूभृतो भविष्यन्ति ॥२७॥

रुद्रसावर्णिर्भविता द्वादशो मनुः ॥२८॥

कृतधामा तत्रेन्द्रो हरिता रोहिताः सुमनसः

सुकर्माणः सुतपाश्च देवाः ॥२९॥

तपस्वी चारुतपास्तपोमूर्तिस्तपोरतिस्त

पोधृतिर्ज्योतिस्तप इत्येते सप्तर्षयः ॥३०॥

देववान् देवश्रेष्ठाद्यास्तस्य मनोः

सुता भूपाला भविष्यन्ति ॥३१॥

त्रयोदशो रुचिर्नाम मनुः ।

स्रग्वी बाणः सुधर्मा प्रभृतयो देवगणाः ।

तेषामिन्द्र ऋषभो नाम भविता ॥३२॥

निश्चितोऽग्नितेजा वपुष्मान् धृष्टो

वारुणिर्हविष्मान् नहुषो भव्य इति सप्तर्षयः ।

सुधर्मा देवानीकादयस्तस्य मनोः पुत्राः

पृथ्वीश्वरा भविष्यन्ति ॥३३॥

भौमश्चतुर्दशो मनुर्भविता । सुरुचिस्तत्रेन्द्रः

चक्षुष्मन्तः पवित्राः कनिष्ठाभा देवगणाः ॥३४॥

अग्निबाहुचिशुक्रमाधवशिवाभीमजितश्वासा इत्येते सप्तर्षयः ।

उरुगम्भीरब्रह्माद्यास्तस्य मनोः सुता राजानः ॥३५॥

एवं ते चतुर्दश मन्वन्तराणि कथितानि ।

राजानश्च यैरियं वसुधा पाल्यते ॥३६॥

अब भविष्य मन्वन्तरों का वर्णन किया जाता है – आदित्य से संज्ञा के गर्भ से उत्पन्न हुए जो 'मनु' हैं, उनकी चर्चा पहले हो चुकी है और छाया के गर्भ से उत्पन्न दूसरे 'मनु' हैं । इनमें प्रथम उत्पन्न हुए जो 'सावर्ण' मनु हैं, उनके ही 'सावर्णिक' नामक आठवें मन्वन्तर का वर्णन सुनिये । 'सावर्ण' ही आठवें मनु होंगे । उस समय सुतप आदि देवगण होंगे और 'बलि' उनके इन्द्र होंगे । दीप्तिमान्, गालव, नामा, कृप, अश्वत्थामा, व्यास और ऋष्यश्रृङ्ग ये सप्तर्षि होंगे । विराज, उर्वरीय और निर्मोक आदि सावर्ण मनु के पुत्र राजा होंगे । नवें भावी मनु 'दक्षसावर्णि' हैं । धृति, कीर्ति, दीप्ति, केतु, पञ्चहस्त, निरामय तथा पृथुश्रवा आदि दक्षसावर्णि मनु के पुत्र उस समय राजा होंगे । उस मन्वन्तर में मरीचिगर्भ, सुधर्मा और हविष्मान्ये देवता होंगे और उनके इन्द्र 'अद्भुत' नाम से प्रसिद्ध होंगे । सवग, कृतिमान्, हव्य, वसु, मेधातिथि तथा ज्योतिष्मान् (और सत्य) - ये सप्तर्षि होंगे । दसवें मनु 'ब्रह्मसावर्णि' होंगे । उस समय विरुद्ध आदि देवता और उनके 'शान्ति' नामक इन्द्र होंगे । हविष्मान्, सुकृति, सत्य, तपोमूर्ति, नाभाग, प्रतिमोक और सप्तकेतु - ये सप्तर्षि होंगे । सुक्षेत्र, उत्तम, भूरिषेण आदि 'ब्रह्मसावर्णि ' के पुत्र राजा होंगे । ग्यारहवें मन्वन्तर में 'धर्मसावर्णि' नामक मनु होंगे । उस समय सिंह, सवन आदि देवगण और उनके 'दिवस्पति' नामक इन्द्र होंगे । निर्मोह, तत्त्वदर्शी, निकम्प, निरुत्साह, धृतिमान् और रुच्य - ये सप्तर्षि होंगे । चित्रसेन और विचित्र आदि धर्मसावर्णि मनु के पुत्र राजा होंगे । बारहवें मनु 'रुद्रसावर्णि' होंगे । उस मन्वन्तर में 'कृतधामा' नामक इन्द्र और हरित, रोहित, सुमना, सुकर्मा तथा सुतपा नामक देवगण होंगे । तपस्वी, चारुतपा, तपोमूर्ति, तपोरति, तपोधृति, ज्योति और तप ये सप्तर्षि होंगे । रुद्रसावर्णि के पुत्र देववान् और देवश्रेष्ठ आदि भूमण्डल के राजा होंगे । तेरहवें मनु का नाम 'रुचि' होगा । उस समय स्रग्वी, बाण और सुधर्मा नामक देवगण तथा उनके 'ऋषभ' नामक इन्द्र होंगे । निश्चित, अग्नितेजा, वपुष्मान्, धृष्ट, वारुणि, हविष्मान् और भव्यमूर्ति नहुष ये सप्तर्षि होंगे । उस मनुके सुधर्मा तथा देवानीक आदि पुत्र भूपाल होंगे । चौदहवें भावी मनु का नाम 'भौम' होगा । उस समय 'सुरुचि' नामक इन्द्र और चक्षुष्मान्, पवित्र तथा कनिष्ठाभ नामक देवगण होंगे । अग्रिबाहु, शुचि, शुक्र, माधव, शिव, अभीम और जितश्वास - ये सप्तर्षि होंगे तथा उस भौम मनु के पुत्र ऊरु, गम्भीर और ब्रह्मा आदि भूतल के राजा होंगे । इस प्रकार मैंने आपसे चौदह मन्वन्तरों का और उन- उन मनु के पुत्र तत्कालीन राजाओं का वर्णन किया, जिनके द्वारा इस वसुधा का पालन होता है ॥१७ - ३६॥

मनुः सप्तर्षयो देवा भूपालाश्च मनोः सुता ।

मन्वन्तरे भवन्त्येते शक्राश्चैवाधिकारिणः ॥३७॥

चतुर्दशभिरेतैस्तु गतैर्मन्वन्तरैर्द्विज ।

सहस्त्रयुगपर्यन्तः कालो गच्छति वासरः ॥३८॥

तावत्प्रमाणा च निशा ततो भवति सत्तम ।

ब्रह्मरुपधरः शेते सर्वात्मा नृहरिः स्वयम् ॥३९॥

त्रैलोक्यमखिलं ग्रस्ता भगवानादिकृद्विभुः ।

स्वमायामास्थितो विप्र सर्वरुपी जनार्दन ॥४०॥

अथ प्रबुद्धो भगवान् यथा पूर्वं तथा पुनः ।

युगव्यवस्थां कुरुते सृष्टिं च पुरुषोत्तमः ॥४१॥

एते तवोक्ता मनवोऽमराश्च पुत्राश्च भूपा मुनयश्च सर्वे ।

विभूतयस्तस्य स्थितौ स्थितस्य तस्यैव सर्व त्वमवेहि विप्र ॥४२॥

प्रत्येक मन्वन्तर में मनु, सप्तर्षि, देवता और भूपाल मनुपुत्र तथा इन्द्र - ये अधिकारी होते हैं । ब्रह्मन् ! इन चौदह मन्वन्तरों के व्यतीत हो जाने पर एक हजार चतुर्युग का समय बीत जाता है । यह (ब्रह्मजी का) एक दिन कहलाता है । साधुशिरोमणे ! फिर उतने ही प्रमाण की उनकी रात्रि होती है । उस समय सब भूतों के आत्मा साक्षात्‍ भगवान् नृसिंह ब्रह्मरुप धारण करके शयन करते हैं । विप्रवर ! सर्वत्र व्यापक एवं आदिविधाता सर्वरुप भगवान् जनार्दन उस समय समस्त त्रिभुवन को अपने में लीन करके अपनी योगमाया का आश्रय ले शयन करते हैं । फिर जाग्रत् होने पर वे भगवान् पुरुषोत्तम् पूर्वकल्प के अनुसार पुनः युग- व्यवस्था तथा सृष्टि करते हैं । ब्रह्मन् ! इस प्रकार मैंने मनु, देवगण, भूपाल, मनुपुत्र और ऋषि - इन सबका आपसे वर्णन किया । आप इन सबको पालनकर्ता भगवान् विष्णु की विभूतियाँ ही समझें ॥३७ - ४२॥

इति श्रीनरसिंहपुराणे त्रयोविंशोऽध्यायः ॥२३॥

इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराण में 'चौदह मन्वन्तरों का वर्णन' नामक तेईसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥२३॥

आगे जारी- श्रीनरसिंहपुराण अध्याय 24 

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