नरसिंहपुराण अध्याय २२

नरसिंहपुराण अध्याय २२  

नरसिंहपुराण अध्याय २२ में चन्द्रवंश का वर्णन है।

नरसिंहपुराण अध्याय २२

श्रीनरसिंहपुराण अध्याय २२  

Narasingha puran chapter 22

नरसिंह पुराण बाईसवाँ अध्याय

नरसिंहपुराण अध्याय २२    

श्रीनरसिंहपुराण द्वाविंशतितमोऽध्यायः   

॥ॐ नमो भगवते श्रीनृसिंहाय नमः॥

नरसिंहपुराण

अध्याय २२

सूत उवाच

सोमवंशं श्रृणुष्वाथ भरद्वाज महामुने ।

पुराणे विस्तरेणोक्तं संक्षेपात् कथयेऽधुना ॥१॥

सूतजी बोले - महामुने भरद्वाज ! अब चन्द्रवंश का वर्णन सुनो । (अन्य) पुराणों में इसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है, अतः इस समय मैं यहाँ संक्षेप से इसका वर्णन करता हूँ ॥१॥

आदौ तावद्वह्मा । ब्रह्मणो मानसः पुत्रो

मरीचिर्मरीचेर्दाक्षायण्यां कश्यपः ॥२॥

कश्यपाददितेरादित्यः ।

आदित्यात् सुवर्चलायां मनुः ॥३॥

मनोः सुरुपायां सोमः । सोमाद्रोहिण्यां बुधः ।

बुधादिलायां पुरुरवाः ॥४॥

पुरुरवस आयुः । आयो रुपवत्यां नहुषः ॥५॥

नहुषात् पितृवत्यां ययातिः ।

ययातेः शर्मिष्ठायां पुरुः ॥६॥

पूरोर्वशदायां सम्पातिः । सम्पातेर्भानुदत्तायां सार्वभौमः ।

सार्वभौमस्य वैदेह्यां भोजः ॥७॥

भोजस्य लिङ्गायां दुष्यन्तः

दुष्यन्तस्य शकुन्तलायां भरतः ॥८॥

भरतस्य नन्दायामजमीढः । अजमीढस्य सुदेव्यां पृश्निः ।

पृश्नेरुग्रसेनायां प्रसरः । प्रसरस्य बहुरुपायां शंतनुः ।

शंतनोर्योजनगन्धायां विचित्रवीर्यः ।

विचित्रवीर्यस्याम्बिकायां पाण्डुः ॥९॥

पाण्डोः कुन्तिदेव्यामर्जुनः ।

अर्जुनात् सुभद्रायामभिमन्युः ॥१०॥

अभिमन्योरुत्तरायां परीक्षितः ।

परीक्षितस्य मातृवत्यां जनमेजयः ।

जनमेजयस्य पुण्यवत्यां शतानीकः ॥११॥

शतानीकस्य पुष्पवत्यां सहस्त्रानीकः ।

सहस्त्रानीकस्य मृगवत्यामुदयनः ।

तस्य वासवदत्तायां नरवाहनः ॥१२॥

नरवाहनस्याश्वमेधायां क्षेमकः ।

क्षेमकान्ताः पाण्डवाः सोमवंशो निवर्तते ॥१३॥

सर्वप्रथम ब्रह्माजी हुए, उनके मानसपुत्र मरीचि हुए, मरीचि से दाक्षायणी के गर्भ से कश्यपजी उत्पन्न हुए । कश्यप से अदिति के गर्भ से सूर्य का जन्म हुआ । सूर्य से सुवर्चला (संज्ञा)- के गर्भ से मनु की उत्पत्ति हुई । मनु के द्वारा सुरुपा के गर्भ से सोम और सोम के द्वारा रोहिणी के गर्भ से बुध का जन्म हुआ तथा बुध के द्वारा इला के गर्भ से राजा पुरुरवा उत्पन्न हुए । पुरुरवा से आयु का जन्म हुआ, आयु द्वारा रुपवती के गर्भ से नहुष हुए । नहुष के द्वारा पितृवती के गर्भ से ययाति हुए और ययाति से शर्मिष्ठा के गर्भ से पूरु का जन्म हुआ । पूरु के द्वारा वंशदा के गर्भ से सम्पाति और उससे भानुदत्ता के गर्भ से सार्वभौम हुआ । सार्वभौम से वैदेही के गर्भ से भोज का जन्म हुआ । भोज के लिङ्गा के गर्भ से दुष्यन्त और दुष्यन्त के शकुन्तला से भरत हुआ । भरत के नन्दा से अजमीढ नामक पुत्र हुआ, अजमीढ के सुदेवी के गर्भ से पृश्नि हुआ तथा पृश्नि के उग्रसेना के गर्भ से प्रसर का आविर्भाव हुआ। प्रसर के बहुरुपा के गर्भ से शंतनु हुए, शंतनु से योजनगन्धा ने विचित्रवीर्य को जन्म दिया । विचित्रवीर्य के अम्बिका के गर्भ से पाण्डु का जन्म हुआ । पाण्डु से कुन्तीदेवी के गर्भ से अर्जुन हुआ, अर्जुन से सुभद्रा ने अभिमन्यु से उत्तरा के गर्भ से परीक्षित् हुआ, परीक्षित के मातृवती से जनमेजय उत्पन्न हुआ और जनमेजय के पुण्यवती के गर्भ से शतानीक की उत्पत्ति हुई । शतानीक के पुष्पवती से सहस्त्रानीक हुआ, सहस्त्रानीक से मृगवती से उदयन उत्पन्न हुआ और उदयन के वासवदत्ता के गर्भ से नरवाहन हुआ । नरवाहन के अश्वमेधा से क्षेमक हुआ । यह क्षेमक ही पाण्डववंश का अन्तिम राजा है, इसके बाद सोमवंश निवृत्त हो जाता है ॥२ - १३॥

य इदं श्रृणुयान्नित्यं राजवंशमनुत्तमम् ।

सर्वपापविशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥१४॥

यश्चेदं पठते नित्यं श्राद्धे वा श्रावयेत् पितृन् ।

वंशानुकीर्तनं पुण्यं पितृणां दत्तमक्षयम् ॥१५॥

राज्ञां हि सोमस्य मया तवेरित

वंशानुकीर्तिर्द्विजं पापनाशनी ।

श्रृणुष्व विप्रेन्द्र मयोच्यमानं

मन्वन्तरं चापि चतुर्दशाख्यम् ॥१६॥

जो पुरुष इस उत्तम राजवंश का सदा श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त एवं विशुद्धचित्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त होता है । जो इस पवित्र वंश- वर्णन को प्रतिदिन स्वयं पढ़ता अथवा श्राद्धकाल में पितृगणों को सुनाता है उसके पितरों को दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है । द्विज ! यह मैंने आपसे सोमवंशी राजाओं का पाप - नाशक वंशानुकीर्तन सुनाया । विप्रवर ! अब मेरे द्वारा बताये जानेवाले चौदह मन्वन्तरों को सुनिये ॥१४ - १६॥

इति श्रीनरसिंहपुराणे सोमवंशानुकीर्तनं नाम द्वाविंशोऽध्यायः ॥२२॥

इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराण में 'सोमवंश का वर्णन' नामक बाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥२२॥

आगे जारी- श्रीनरसिंहपुराण अध्याय 23  

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