नरसिंहपुराण अध्याय २१
नरसिंहपुराण अध्याय २१ में सूर्यवंश का वर्णन है।
श्रीनरसिंहपुराण अध्याय २१
Narasingha puran
chapter 21
नरसिंह पुराण इक्कीसवाँ अध्याय
नरसिंहपुराण अध्याय २१
श्रीनरसिंहपुराण एकविंशतितमोऽध्यायः
॥ॐ नमो भगवते श्रीनृसिंहाय नमः॥
नरसिंहपुराण
अध्याय २१
भरद्वाज उवाच
अनुसर्गश्च सर्गश्च त्वया चित्रा
कथोरिता ।
वंशामन्वन्तरे ब्रूहि वंशानुचरितं च
मे ॥१॥
भरद्वाजजी बोले - सूतजी ! आपने 'सर्ग' और 'अनुसर्ग' का वर्णन किया, विचित्र कथाएँ सुनायीं; अब मुझसे राजाओं के वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित का
वर्णन करें ॥१॥
सूत उवाच
राज्ञां वंशः पुराणेषु विस्तरेण
प्रकीर्तितः ।
संक्षेपात् कथयिष्यामि
वंशमन्वन्तराणि ते ॥२॥
वंशानुचरितं चैव श्रृणु विप्र
महामते ।
श्रृण्वन्तु मुनयश्चेमे
श्रोतुमागत्य ये स्थिताः ॥३॥
सूतजी बोले – पुराणों में राजाओं के
वंश का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है; यहाँ
मैं राजाओं के वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित का संक्षेप से
वर्णन करुँगा । महामते विप्रवर ! इसे आप तथा अन्य मुनि भी, जो
कथा श्रवण के लिये यहाँ आकर ठहरे हुए हैं, सुनें ॥२ - ३॥
आदौ तावद्वह्मा ब्रह्मणो मरीचिः ।
मरीचेः कश्यपः कश्यपादादित्यः ॥४॥
आदित्यान्मनुः । मनोरिक्ष्वाकुः;
इक्ष्वाकोर्विकुक्षिः ।
विकुक्षेर्द्योतः,
द्योताद्वेनो वेनात्पृथुः पृथोः पृथाश्वः ॥५॥
पृथाश्वादसंख्याताश्वः ।
असंख्याताश्वान्मान्धाता ॥६॥
मान्धातुः पुरुकुत्सः
पुरुकुत्साददृषदो दृषदादभिशम्भुः ॥७॥
अभिशम्भोर्दारुणो दारुणात् सगरः ॥८॥
सगराद्धर्यश्वो हर्यश्वाद्धारीतः
॥९॥
हारीताद्रोहिताश्चो
रोहिताश्चादंशुमान् ।
अंशुमतो भगीरथः ॥१०॥
भगीरथात् सौदासः सौदासाच्छत्रुंदमः
॥११॥
शत्रुंदमादनरण्यः ।
अनरण्याद्दीर्घबाहुः ।
दीर्घबाहोरजः ॥१२॥
अजाद्दशरथः,
दशरथाद्रामः,
रामाल्लवः,
लवात् पद्मः ॥१३॥
पद्मादनुपर्णः ।
अनुपर्णाद्वस्त्रपाणिः ॥१४॥
वस्त्रपाणेः शुद्धोदनः ।
शुद्धोदनाद्धधः ।
बुधादादित्यवंशो निवर्तते ॥१५॥
सबसे पहले ब्रह्माजी प्रकट हुए;
उनसे मरीचि, मरीचि से कश्यप, कश्यप से सूर्य, सूर्य से मनु, मनु से इक्ष्वाकु, इक्ष्वाकु से विकुक्षि, विकुक्षि से द्योत, द्योत से वेन, वेन से पृथु और पृथु से पृथाश्व की उत्पत्ति हुई । पृथाश्व से
असंख्याताश्व, असंख्याताश्व से मान्धाता, मान्धाता से पुरुकुत्स, पुरुकुत्स से दृषद, दृषद से अभिशम्भु, अभीशाम्भु से दारुण, दारुण से सगर, सगर से हर्यश्च, हर्यश्व से हारीत, हारीत से रोहिताश्व, रोहिताश्व से अंशुमान् तथा अंशुमान से भगीरथ उत्पन्न हुए। भगीरथ से सौदास,
सौदास से शत्रुंदम्, शत्रुंदम से अनरण्य,
अनरण्य से दीर्घबाहु, दीर्घबाहु से अज,
अज से दशरथ, दशरथ से श्रीराम, श्रीराम से लव, लव से पद्म, पद्म
से अनुपूर्ण और अनुपर्ण से वस्त्रपाणि का जन्म हुआ । वस्त्रपाणि से शुद्धोदन और
शुद्धोदन से बुध (बुद्ध) - की उत्पत्ति हुई । बुध से सूर्यवंश समाप्त हो जाता है
॥४ - १५॥
सूर्यवंशभव ये ते प्राधान्येन
प्रकीर्तिताः ।
यैरियं पृथिवी भुक्ता धर्मतः
क्षत्रियैः पुरा ॥१६॥
सूर्यस्य वंशः कथितो मया मुने
समुद्रता यत्र नरेश्वराः पुरा ।
मयोच्यमानाञ्छशिनः समाहितः
श्रृणुष्व वंशेऽथ नृपाननुत्तमान्
॥१७॥
सूर्यवंश में उत्पन्न हुए जो
क्षत्रिय हैं, उनमें से मुख्य - मुख्य लोगों का
यहाँ वर्णन किया गया है, जिन्होंने पूर्वकाल में इस पृथ्वी का
धर्मपूर्वक पालन किया है । मुने ! यह मैने सूर्यवंश का वर्णन किया है, जिसमें प्राचीन काल में अनेकानेक नरेश हो गये हैं । अब मेरे द्वारा बतलाये
जानेवाले चन्द्रवंशीय परम उत्तम राजाओं का वर्णन आपलोग सुनें ॥१६ - १७॥
इति श्रीनरसिंहपुराणे सूर्यवंशकथनं
नामैकविंशोऽध्यायः ॥२१॥
इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराण में 'सूर्यवंश का वर्णन' नामक इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥२१॥
आगे जारी- श्रीनरसिंहपुराण अध्याय 22
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