नरसिंहपुराण अध्याय २०

नरसिंहपुराण अध्याय २०  

नरसिंहपुराण अध्याय २० में मारुतों की उत्पत्ति का वर्णन है।

नरसिंहपुराण अध्याय २०

श्रीनरसिंहपुराण अध्याय २०  

Narasingha puran chapter 20

नरसिंह पुराण बीसवाँ अध्याय

नरसिंहपुराण अध्याय २०    

श्रीनरसिंहपुराण विंशतितमोऽध्यायः   

॥ॐ नमो भगवते श्रीनृसिंहाय नमः॥

नरसिंहपुराण

अध्याय २०

सूत उवाच

साम्प्रतं मारुतोत्पत्तिं वक्ष्यामि द्विजसत्तम ।

पुरा देवासुरे युद्धे देवैरिन्द्रादिभिर्दितेः ॥१॥

पुत्राः पराभूता दितिश्च विनष्टपुत्रा महेन्द्रदर्पहरं

पुत्रमिच्छन्ती कश्यपमृषिं स्वपतिमाराधयामास ॥२॥

स च तपसा संतुष्टो गर्भाधानं चकार तस्याम् ।

पुनस्तामेवमुक्तवान् ॥३॥

यदि त्वं शुचिः सती शरच्छतामिमं गर्भं धारयिष्यसि

ततश्च महेन्द्रदर्पहन्ता पुत्रो भविष्यति ।

इत्येवमुक्ता सा च तं गर्भं धारयामास ॥४॥

श्रीसूतजी बोले - द्विजश्रेष्ठ ! अब मैं मारुतों को उत्पत्ति का वर्णन करुँगा । पूर्वकाल में देवासुर- संग्राम में इन्द्र आदि देवताओं द्वारा दिति के पुत्र दैत्यगण पराजित हो गये थे । उस समय दिति, जिसके पुत्र नष्ट हो गये थे, महेन्द्र के अभिमान को चूर्ण करनेवाले पुत्र की इच्छा मन में लेकर अपने पति कश्यप ऋषि की आराधना करने लगी । तपस्या से संतुष्ट होकर ऋषि ने दिति के भीतर गर्भ का आधान किया । फिर वे उससे इस प्रकार बोले- 'यदि तुम पवित्र रहती हुई सौ वर्षोंतक इस गर्भ को धारण कर सकोगी तो उसके बाद इन्द्र का दर्प चूर्ण करनेवाला पुत्र तुम्हारे गर्भ से उत्पन्न होगा।' कश्यपजी के यों कहने पर दिति ने उस गर्भ को धारण किया ॥१ - ४॥

इन्द्रोऽपि तञ्ज्ञात्वा वृद्धब्राह्मणरुपेणागत्य

दितिपार्श्वं स्थितवान् ।

किंचिदूनपूर्णे वर्षशते पादशौचमकृत्वा दितिः

शयनमारुह्य निद्रां गता ॥५॥

सोऽपि लब्धावसरो वज्रपाणिस्तत्कुक्षिं प्रविश्य

वज्रेण तं गर्भं सप्तधा चिच्छेद ।

सोऽपि तेन प्रच्छिद्यमानो रुरोद ॥६॥

मा रोदीरिति वदन्निन्द्रस्तान् सप्तधैकैकं चिच्छेद ॥७॥

सप्तधा ते सर्वे मरुतो यतो जातमात्रान्मा रोदीरित्युक्तवान् ।

महेन्द्रस्य सहाया अमी मरुतो नाम देवा बभूवुः ॥८॥

इन्द्र को भी जब यह समाचार ज्ञात हुआ, तब वे बूढ़े ब्राह्मण के वेष में दिति के पास आये और रहने लगे । जब सौ वर्ष पूर्ण होने में कुछ ही कमी रह गयी, तब एक दिन दिति (भोजन के पश्चात्) पैर धोये बिना ही शय्या पर आरुढ़ हो, सो गयी । इधर इन्द्र ने भी अवसर प्राप्त हो जाने से वज्र हाथ में ले, दिति के उदर में प्रविष्ट हो, वज्र से उस गर्भ के सात टुकड़े कर दिये । उनके द्वारा काटे जाने पर वह गर्भ रोने लगा । तब इन्द्र ने 'मा रोदीः' (मत रोओ) - यों कहते हुए पुनः एक- एक के सात - सात टुकड़े कर डाले । इस तरह सात - सात टुकड़ो में बँटे हुए वे सातों खण्ड 'मारुत' नाम से विख्यात हुए; क्योंकि जन्म होते ही इन्द्र ने उन्हें 'मा रोदीः' - इस प्रकार कहा था । ये सभी इन्द्र के सहायक 'मरुत्' नामक देवता हुए ॥५ - ८॥

एवं मुने सृष्टिरियं तवेरिता देवासुराणां नरनागरक्षसाम् ।

वियन्मुखानामपि यः पठेदिदं श्रृण्वंश्च भक्त्या हरिलोकमेति सः ॥९॥

मुने ! इस प्रकार मैंने तुमसे देवता, असुर, नर, नाग, राक्षस और आकाश आदि भूतों की सृष्टि का वर्णन किया । जो इसका भक्तिपूर्वक पाठ अथवा श्रवण करता है, वह विष्णुलोक को प्राप्त होता है ॥९॥

इति श्रीनरसिंहपुराणे विंशतितमोऽध्यायः ॥२०॥

इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराण में 'मरुतों की उत्पत्ति' नामक बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥२०॥

आगे जारी- श्रीनरसिंहपुराण अध्याय 21

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