श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड – प्रेतकल्प अध्याय २८-२९

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय २८-२९

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय २८-२९ प्रेतत्वमुक्ति के उपाय का वर्णन है।

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड – प्रेतकल्प अध्याय २८-२९

श्रीगरुडमहापुराणम् प्रेतकाण्डः (धर्मकाण्डः) अष्टाविंशतितमोऽध्यायः,नवविंशतितमोऽध्यायः

Garud mahapuran dharmakand pretakalpa chapter २८-२९ 

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अट्ठाईसवाँ, उन्तीसवाँ अध्याय  

गरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय २८-२९                 

गरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय २८-२९ का श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित

गरुडपुराणम्  प्रेतकाण्डः (धर्मकाण्डः) अध्यायः २८-२९           

गरुड उवाच ।

सर्वेपामनुकम्पार्थं ब्रूहि मे मधुसूदन ।

प्रेतत्वान्मुच्यते येन दानेन सुकृतेन वा ॥ २,२८.१ ॥

गरुडजी ने कहा- हे मधुसूदन ! जिस दान या सत्कर्म से प्राणी की प्रेतयोनि छूट जाती है, उसे बताने की कृपा करें, इसके ज्ञान से लोगों का बड़ा कल्याण होगा।

श्रीकृष्ण उवाच ।

शृणु दानं प्रवक्ष्यामि सर्वाशु भविनाशनम् ।

सन्तप्तहाटकमयं घटकं विधाय ब्रह्मेशकेशवयुतं सह लोकपालैः ।

क्षीराज्यपूर्णविविरं प्रणिपत्य भक्त्या विप्राय देहि तव दानशतैः किमन्यैः ॥ २,२८.२ ॥

श्रीकृष्ण ने कहा- हे पक्षिराज ! सुनो! मैं तुम्हें समस्त अमङ्गलों को विनष्ट करनेवाले दान को बता रहा हूँ। शुद्ध स्वर्ण का घट बनाकर ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा लोकपालोंसहित उसकी पूजाकर दुग्ध और घृत से परिपूर्ण उस घट को सुपात्र ब्राह्मण को दान में देने से प्रेतत्व से मुक्ति मिल जाती है।

हे गरुड ! पुत्रहीन व्यक्ति की सद्गति नहीं होती, अतः यथाविधान पुत्र उत्पन्न करना चाहिये । मृत व्यक्ति को गोबर से लीपी गयी मण्डलाकार भूमि में स्थापित करना चाहिये । भूमि गोबर से लीपने पर पवित्र हो जाती है तथा मण्डल का निर्माण करने से उस स्थान पर देवताओं का वास हो जाता है। ऐसे ही मृत व्यक्ति के नीचे तिल और कुश बिछाने से जीव को उत्तम गति की प्राप्ति होती है, साथ ही मृत व्यक्ति के मुँह में पञ्चरत्न डालने से जीव को शुभ गति मिलती है ।

हे तार्क्ष्य ! तिल मेरे पसीने से उत्पन्न हैं, इसलिये वे सदा पवित्र हैं'मम स्वेदसमुद्भूतास्तिलास्तार्क्ष्य पवित्रकाः।' (२९।१५ ) । इसी प्रकार कुश की उत्पत्ति मेरे रोम से हुई है 'दर्भा मल्लोमसम्भूताः। ( २९ । १७) । कुशयुक्त भूमि अपने ऊपर विद्यमान मृत जीव को निःसंदेह स्वर्ग पहुँचा देती है। कुश में ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव- ये तीनों देव प्रतिष्ठित रहते हैं- 'त्रयो देवाः कुशे स्थिताः । ' हे पक्षिराज ! ब्राह्मण, मन्त्र, कुश, अग्नि तथा तुलसी- ये बार- बार प्रयोग में लाये जाने पर भी पर्युषित (बासी) नहीं होते-

विप्रा मन्त्राः कुशा वह्निस्तुलसी च खगेश्वर ।

नैते निर्माल्यतां यान्ति क्रियमाणाः पुनः पुनः ॥(२९।२१)

इसी तरह विष्णु, एकादशीव्रत, भगवद्गीता, तुलसी, ब्राह्मण तथा गौ - ये छ: इस संसारसागर से मुक्ति दिलानेवाले हैं,-

विष्णुरेकादशीगीतातुलसीविप्रधेनवः ।

अपारे दुर्गसंसारे षट्पदी मुक्तिदायिनी ॥(२९ । २४)

इसीलिये हे गरुड ! तिल, कुश और तुलसी- ये आतुर व्यक्ति की दुर्गति को रोककर उसे सद्गति दिलाते हैं। आतुर – काल में दान की भी विशेष महिमा है । भगवान् विष्णु की देह से लवण का प्रादुर्भाव हुआ है, अतः आतुर – काल में लवण-दान करने से भी जीव की दुर्गति नहीं होती। *

* २८वें तथा २९वें अध्याय का विषय प्रथम तथा द्वितीय अध्याय में पूर्णरूप से आ गया है, इसलिये इसे यहाँ संक्षिप्तरूप में दिया गया है। पूर्ण विवरण प्रथम तथा द्वितीय अध्याय में देखना चाहिये ।

इति श्रीगारुडे महापुराणे उत्तरखण्डे द्वितीयांशे धर्मकाण्डे प्रेतकल्पे श्रीकृष्णगरुडसंवादे और्ध्वदहिककर्म कालक्रियमाणनानादानादिफलप्रश्रनिरूपणं नामाष्टाविंशोऽध्यायः॥

इति श्रीगारुडे महापुराणे उत्तरखण्डे द्वितीयांशे प्रेतकल्पे धर्मकाण्डे श्रीकृष्णगरुडसंवादे और्ध्वदेहिककर्मणि पुत्रदर्भतिलतुलसीगोभूलेपताम्रपात्रदाना दीनामावश्यकत्वनिरूपणं नामैकोनत्रिशोऽध्यायः॥

जारी-आगे पढ़े............... गरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय 30

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