श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड – प्रेतकल्प अध्याय २३

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय २३                 

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय २३ प्रेतबाधाजन्य विविध स्वप्न तथा उसका प्रायश्चित्तविधान का वर्णन है।

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड – प्रेतकल्प अध्याय २३

श्रीगरुडमहापुराणम् प्रेतकाण्डः (धर्मकाण्डः) त्रयोविंशतितमोऽध्यायः

Garud mahapuran dharmakand pretakalpa chapter 23

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प तेईसवाँ अध्याय  

गरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय २३             

गरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय २३ का श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित

गरुडपुराणम्  प्रेतकाण्डः (धर्मकाण्डः) अध्यायः २३        

गरुड उवाच ।

किङ्किं कुर्वन्ति वै प्रेताः पिशाचत्वेव्यवस्थिताः ।

वदन्ति वा कदाचित्किं तद्वदस्व सुरेश्वर ॥ २,२३.१ ॥

श्रीगरुड ने कहा- हे देवेश ! पिशाचयोनि में रहनेवाले प्रेत क्या - क्या करते हैं? वे क्या कहते हैं ? उसे आप कहिये ।

श्रीभगवानुवाच ।

तेषां स्वरूपं वक्ष्यामि चिह्नं स्वप्नं यथातथम् ।

क्षुत्पिपासार्दितास्ते वै प्रविशेयुः स्ववेश्मनि ॥ २,२३.२ ॥

प्रतिष्ठा वायुदेहेषु शयानांस्तु स्ववंशजान् ।

तत्र यच्छन्ति लिङ्गानि दर्शयन्ति खगेश्वर ॥ २,२३.३ ॥

स्वपुत्रस्वकलत्राणि स्वबन्धुन्तत्र गच्छति ।

हयो गजो वृषो मर्त्योदृश्यते विकृताननः ॥ २,२३.४ ॥

शयानं विपरीतं तु आत्मानं च विपर्ययम् ।

उत्थितः पश्यति यस्तु तद्विन्द्यात्प्रेतनिर्मितम् ॥ २,२३.५ ॥

स्वप्ने नरौ हि निगडैर्बध्यते बहुधा यदि ।

अन्नं च याचते स्वप्ने कुवेषः पूर्वजो मृतः ॥ २,२३.६ ॥

स्वप्ने यो भुज्यमानस्य गृहीत्वान्नं पलायते ।

आत्मनस्तु परो वापि तृषार्तस्तु जलं पिबेत् ॥ २,२३.७ ॥

श्रीभगवान्ने कहा- हे पक्षिराज ! उनका जैसा स्वरूप है, जो उनकी पहचान है और जिस प्रकार वे स्वप्न दिखाते हैं, वह सब मैं तुम्हें सुनाता हूँ । भूख-प्यास से दुःखित वे अपने घर में प्रवेश करते हैं । उसी वायुरूपी देह में प्रविष्ट होकर अपने वंशजों को अपना चिह्न दिखाते हैं । प्रेत अपने पुत्र, अपनी स्त्री तथा अपने बन्धु-बान्धवों के पास जाता है और अश्व, हाथी, बैल अथवा मनुष्य का विकृत रूप धारण करके वह स्वप्न में दिखायी देता है। जो व्यक्ति सोकर उठने पर अपने को शय्या पर विपरीत स्थिति में देखता है, वह अवस्थिति प्रेतयोनि के कारण हुई है, ऐसा मानना चाहिये । यदि स्वप्न में अपने-आपको जंजीर में बँधा हुआ देखे और मरा हुआ पूर्वज निन्दनीय वेष में दिखायी दे, खाते हुए व्यक्ति का अन्न लेकर भाग जाय और प्यास से पीड़ित वह अपना या पराये का जलपान कर ले तो उसे पिशाचयोनि में गया हुआ मानें।

वृषभारोहणं स्वप्ने वृषभैः सह गच्छति ।

उत्पत्य गगनं याति तीर्थे याति क्षुधातुरः ॥ २,२३.८ ॥

स्ववाचा वदते यस्तु गोवृषद्विजावाजिषु ।

लिङ्गे गजे तथा देवे भूते प्रेते निशाचरे ॥ २,२३.९ ॥

यदि स्वप्न में वह बैल की सवारी करता है, बैलों के साथ कहीं जाता है, डरकर आकाश या भूख से व्याकुल होकर तीर्थ में चला जाता है, अपनी वाणी से गौ, बैल, पक्षी और घोड़े की भाषा में बोलता है, उसे हाथी, देव, भूत, प्रेत तथा निशाचर के चिह्न दिखायी देते हैं तो उसे पिशाच योनि प्राप्त हुआ ही मानें।

स्वप्नमध्ये तु पक्षीन्द्र प्रेतलिङ्गान्यनेकधा ।

स्वकलत्रं स्वबन्धुं वा स्वसुतं स्वपतिं विभुम् ।

विद्यमानं मृतं पश्येत्प्रेतदोषेण निश्चितम् ॥ २,२३.१० ॥

याचते यः परं स्वप्ने क्षुत्तृड्भ्यां च परिप्लुतः ।

तीर्थे गत्वा दहेत्पिण्डान्प्रेतदौषैर्न संशयः ॥ २,२३.११ ॥

निर्गच्छेद्वा गृहाद्वापि स्वप्ने पुत्रस्तथा पशुः ।

पिता भ्राता कलत्रं च प्रेतदोषैस्तु पश्यति ॥ २,२३.१२ ॥

हे पक्षीन्द्र ! प्राणी को स्वप्न में प्रेतयोनि से सम्बन्धित बहुत-से चिह्न दिखायी देते हैं। जो स्वप्न में अपनी जीवित स्त्री, अपने जीवित भाई, पुत्र या पुत्री को मरा हुआ देखे तो उसे प्रेतदोष समझना चाहिये । प्रेतदोष से ही व्यक्ति स्वप्न में भूख-प्यास से व्यथित होकर दूसरे से याचना करता है तथा तीर्थ में जाकर पिण्डदान करता है। यदि स्वप्न में घर से निकलते हुए पुत्र, पिता, भ्राता, पति तथा पशु दिखायी दे तो ऐसा प्रेतदोष से दिखायी देता है।

चिह्नान्येतानि पक्षीन्द्र प्रायश्चित्तं निवेदयेत् ।

कृत्वा स्नानं गृहे तीर्थे श्रीवृक्षे तर्पणं जलैः ॥ २,२३.१३ ॥

कृष्णधान्यानि पूजां च प्रदद्याद्वेदपारगे ।

होमं कुर्याद्यथाशक्ति सम्पूर्णं वाचयेत्सुधीः ॥ २,२३.१४ ॥

एतद्धि श्रद्धया यस्तु प्रेतलिङ्गनिदर्शनम् ।

पठते शृणुते वापि प्रेतचिह्नं विनश्यति ॥ २,२३.१५ ॥

हे द्विजराज ! स्वप्न में ऐसे चिह्न दिखायी देने पर प्रायश्चित्त करने का विधान बताया गया है। घर या तीर्थ में स्नान करके मनुष्य बेल के वृक्ष में जल-तर्पण करे तथा वेदपारंगत ब्राह्मण की सम्यक् पूजा करके उन्हें काले धान्य का दान दे, तदनन्तर यथाशक्ति हवन करके गरुडमहापुराण का पाठ करे। जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक प्रेतचिह्न बतानेवाले इस अध्याय का पाठ करता है अथवा सुनता है, उसका प्रेतदोष स्वतः ही नष्ट हो जाता है।

इति श्रीगारुडे महापुराणे उत्तरखण्डे द्वितीयांशे धर्मकाण्डे प्रेतकल्पे श्रीकृष्णगरुडसंवादे प्रेतकृतितदुक्तितच्चिह्न तद्विमुक्त्युपायनिरूपणं नाम त्रयोविंशोऽध्यायः॥

जारी-आगे पढ़े............... गरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय 24

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