श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड – प्रेतकल्प अध्याय ४३

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय ४३ 

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय ४३ शुद्धि-विधान का वर्णन है।

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड – प्रेतकल्प अध्याय ४३

श्रीगरुडमहापुराणम् प्रेतकाण्डः (धर्मकाण्डः) त्रिचत्वारिंशत्तमोऽध्यायः

Garud mahapuran dharmakand pretakalpa chapter 43

श्रीगरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प तिरालिसवाँ अध्याय  

गरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय ४३                      

गरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय ४३ का श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित

गरुडपुराणम्  प्रेतकाण्डः (धर्मकाण्डः) अध्यायः ४३                 

श्रीविष्णुरुवाच ।

जलाग्निबन्धनभ्रष्टा प्रव्रज्यानाशकच्युताः ।

ऐन्दवाभ्यां विशुध्यन्ति दत्त्वा धेनुं तथा वृषम् ॥ २,४३.१ ॥

ऊनद्वादशवर्षस्य चतुर्वर्षाधिकस्य च ।

प्रायश्चित्तं चरेन्माता पिता वान्योऽपि बान्धवः ॥ २,४३.२ ॥

अतो बालनरस्यापि नापराधो न पातकम् ।

राजदण्डो न तस्यास्ति प्रायश्चित्तं न विद्यते ॥ २,४३.३ ॥

श्रीविष्णु ने कहा- जो जल, अग्नि तथा अन्य किसी बन्धन के भय से धर्मपथ से विचलित हो गये हैं और जो संन्यास धर्म का परित्याग करके पतित हो चुके हैं, वे गौ और वृषभ का दान देकर दो चान्द्रायणव्रत से शुद्धि प्राप्त करते हैं । बारह वर्ष से कम और चार वर्ष से अधिक आयु के बालक के पाप का प्रायश्चित्त माता-पिता अथवा अन्य बान्धव को करना चाहिये। चार वर्ष से कम आयुवाले बालक का न कोई अपराध है और न कोई पाप । उसके लिये न तो राजदण्ड है और न कोई प्रायश्चित्त का विधान ही है ।

रक्तस्य दर्शने दष्टे आतुरा स्त्री भवेद्यदि ।

चतुर्थेऽह्नि पदादींश्च त्यक्त्वा स्नात्वा विशुध्यति ॥ २,४३.४ ॥

आतुरे स्नान उत्पन्ने दशकृत्वो ह्यनातुरः ।

स्नात्वास्नात्वास्पृशेदेनं ततः शुध्येत्स आतुरः ॥ २,४३.५ ॥

यदि रजोदर्शन होने पर स्त्री रोगग्रस्त हो जाय तो वह चौथे दिन वस्त्रादि का परित्याग करके स्नान से शुद्ध हो सकती है। आतुरकाल में जननाशौच प्रयुक्त स्नान होने पर कोई जो रुग्ण न हो ऐसा व्यक्ति दस बार स्नान करके प्रत्येक स्नान के बाद यदि उस आतुर व्यक्ति का स्पर्श करता जाय तो वह आतुर शुद्ध हो जाता है।

इति श्रीगारुडे महापुराणे उत्तरखण्डे द्वितीयांशे धर्मकाण्डे प्रेतकल्पे श्रीकृष्णगरुडसंवादे शुद्धिनिरूपणं नाम त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः॥

जारी-आगे पढ़े............... गरुड महापुराण धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय 44 

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