भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व अध्याय १८
भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व अध्याय १८
- ब्रह्माजी की रथयात्रा का विधान और कार्तिक
शुक्ल प्रतिपदा की महिमा का वर्णन है ।
भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व अध्याय १८
Bhavishya puran Brahma parva
chapter 18
भविष्यपुराणम् पर्व ब्राह्मपर्व अध्यायः १८
भविष्यपुराणम् पर्व १ (ब्राह्मपर्व)
अध्यायः १८
भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व अट्ठारहवाँ अध्याय
भविष्यपुराण
ब्राह्म पर्व अध्याय १८ भावार्थ सहित
सुमन्तु मुनि ने कहा –
हे राजा शतानिक ! कार्तिक मास में जो ब्रह्माजी की रथयात्रा उत्सव
करता हैं, वह ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है । कार्तिक की
पूर्णिमा को मृगचर्म के आसन पर सावित्री के साथ ब्रह्माजी को रथ में विराजमान करे
और विविध वाद्य-ध्वनि के साथ रथयात्रा निकाले । विशिष्ट उत्सव के साथ ब्रह्माजी को
रथपर बैठाये और रथ के आगे ब्रह्माजी के परम भक्त ब्राह्मण शाण्डिली पुत्र को
स्थापित कर उनकी पूजा करे । ब्राह्मणों के द्वारा स्वस्ति एवं पुण्याहवाचन कराये ।
उस रात्रि जागरण करे । नृत्य-गीत आदि उत्सव एवं विविध क्रीड़ाएँ ब्रह्माजी के
सम्मुख प्रदर्शित करे ।
इस प्रकार रात्रि में जागरण कर
प्रतिपदा* के दिन प्रातःकाल ब्रह्माजी का पूजन
करना चाहिये । ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये,
अनन्तर पुण्य शब्दों के साथ रथयात्रा प्रारम्भ करनी चाहिये ।
चारों वेदों के ज्ञाता उत्तम
ब्राह्मण उस रथ को खींचे और रथ के आगे वेद पढ़ते हुए ब्राह्मण चलते रहें ।
ब्रह्माजी के दक्षिण-भाग में सावित्री तथा वाम-भाग में भोजक की स्थापना करें ।
रथके आगे शङ्ख, भेरी, मृदङ्ग आदि विविध वाद्य बजते रहें । इस प्रकार सारे नगर में रथ को घुमाना
चाहिये और नगर की प्रदक्षिणा करनी चाहिये, अनन्तर उसे अपने
स्थान पर ले आना चाहिये । आरती करके ब्रह्माजी को उनके मन्दिर में स्थापित करें ।
इस रथ-यात्रा को सम्पन्न करने वाले, रथ को खींचने वाले तथा
इसका दर्शन करने वाले सभी ब्रह्मलोक को प्राप्त करते हैं । दीपावली के दिन
ब्रह्माजी के मन्दिर में दीप प्रज्वलित करने वाला ब्रह्मलोक को प्राप्त करता हैं ।
दुसरे दिन प्रतिपदा को ब्रह्माजी की पूजा करके स्वयं भी वस्त्र-आभूषण से अलंकृत
होना चाहिये । यह प्रतिपदा तिथि ब्रह्माजी को बहुत प्रिय है । इसी तिथि से बलि के
राज्य का आरम्भ हुआ है । इस दिन ब्रह्माजी का पूजन कर ब्राह्मण-भोजन कराने से
विष्णुलोक की प्राप्ति होती है । चैत्र मास में कृष्ण प्रतिपदा के दिन (होली जलाने
के दुसरे दिन) चाण्डाल का स्पर्श कर स्नान करने से सभी आधि-व्याधियाँ दूर हो जाती
है । उस दिन गौ, महिष आदि को अलंकृत कर उन्हें मण्डप के नीचे
रखना चाहिये तथा ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये । चैत्र, आश्विन
और कार्तिक इन तीनों महीनों की प्रतिपदा श्रेष्ठ हैं, किंतु
इनमें कार्तिक की प्रतिपदा विशेष श्रेष्ठ है । इस दिन किया हुआ स्नान-दान आदि सौ
गुने फल को देता है । राजा बलि को इसी दिन राज्य मिला था, इसलिये
कार्तिक की प्रतिपदा श्रेष्ठ मानी जाती है ।
* विचारणीय है की
अमावस्यान्त माह में कार्तिक पूर्णिमा के उपरान्त कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रतिपदा
होती है तथा पूर्णिमान्त माह में कार्तिक पूर्णिमा के उपरान्त मार्गशीर्ष कृष्ण
पक्ष प्रतिपदा का आरम्भ होता है।
भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व अध्याय १८
सम्पूर्ण।
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