भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व अध्याय १७
भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व अध्याय १७
- प्रतिपत्कल्प- निरूपण में ब्रह्माजी की
पूजा-अर्चा की महिमा का वर्णन है ।
भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व अध्याय १७
Bhavishya puran Brahma parva
chapter 17
भविष्यपुराणम् पर्व ब्राह्मपर्व अध्यायः १७
भविष्यपुराणम् पर्व १ (ब्राह्मपर्व)
अध्यायः १७
भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व सत्रहवाँ अध्याय
भविष्यपुराण
ब्राह्म पर्व अध्याय १७ भावार्थ सहित
राजा शतानीक ने कहा –
ब्रह्मन् ! आप प्रतिपदा तिथि में किये जाने वाले कृत्य, ब्रह्माजी के पूजन की विधि और उसके फल का विस्तारपूर्वक वर्णन करें ।
सुमन्तु मुनि बोले –
हे राजन् ! पूर्व-कल्प में स्थावर-जङ्गमात्मक सम्पूर्ण जगत के नष्ट
हो जाने पर सर्वत्र जल – ही – जल हो
गया । उस समय देवताओं में श्रेष्ठ चतुर्मुख ब्रह्माजी प्रकट हुए और उन्होंने अनेक
लोकों, देवगणों तथा विविध प्राणियों की सृष्टि की । प्रजापति
ब्रह्मा देवताओं के पिता अन्य जीवों के पितामह हैं, इसलिए
इनकी सदा पूजा करनी चाहिये । ये ही जगत् की सृष्टि, पालन तथा
संहार करनेवाले हैं । इनके मन से रुद्रका, वक्षःस्थल से
विष्णु का आविर्भाव हुआ । इनके चारों मुखों से अपने छः अङ्गों के साथ चारों वेद
प्रकट हुए । सभी देवता, दैत्य, गन्धर्व,
यक्ष, राक्षस, नाग आदि
इनकी पूजा करते है । यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्ममय है और ब्रह्म में स्थित हैं,
अतः ब्रह्माजी सबसे पूज्य हैं । राज्य, स्वर्ग
और मोक्ष – ये तीनों पदार्थ इनकी सेवा करने से प्राप्त हो
जाते हैं । इसलिए सदा प्रसन्नचित्त से यावज्जीवन नियम से ब्रह्माजी की पूजा करनी
चाहिये । जो ब्रह्माजी की सदा भक्ति से पूजा करता हैं, वह
मनुष्य-स्वरुप में साक्षात् ब्रह्मा ही है । ब्रह्माजी की पूजा से अधिक पुण्य किसी
में न समझकर सदा ब्रह्माजी का पूजन करते रहना चाहिये । जो ब्रह्माजी का मन्दिर
बनवाकर उसमें विधि-पूर्वक ब्रह्माजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करता हैं, वह यज्ञ, तप, तीर्थ, दान आदि के फलों से करोड़ों गुना अधिक फल प्राप्त करता हैं । ऐसे पुरुष के
दर्शन और स्पर्श से इक्कीस पीढ़ी का उद्धार हो जाता है । ब्रह्माजी की पूजा करने
वाला पुरुष बहुत काल तक ब्रह्मलोक में निवास करता है । वहाँ निवास करने के पश्चात्
वह ज्ञानयोग के माध्यम से मुक्त हो जाता है अथवा भोग चाहने पर मनुष्यलोक में
चक्रवर्ती राजा अथवा वेद – वेदाङ्गपारङ्गत कुलीन ब्राह्मण
होता है । किसी अन्य कठोर तप और यज्ञों की आवश्यकता नहीं है, केवल ब्रह्माजी की पूजा से ही सभी पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं ।जो
ब्रह्माजी के मन्दिर में छोटे जीवों की रक्षा करता हुआ सावधानीपूर्वक धीरे-धीरे
झाड़ू देता है तथा उपलेपन करता है, वह चान्द्रायण-व्रत का फल
प्राप्त करता है । एक पक्ष तक ब्रह्माजी के मन्दिर में जो झाड़ू लगाता है, वह सौ करोड़ युग से भी अधिक ब्रह्मलोक में पूजित होता है और अनन्तर
सर्व-गुण-संपन्न, चारों वेदों का ज्ञाता धर्मात्मा राजा के
रूप में पृथ्वी पर आता है । भक्ति-पूर्वक ब्रह्माजी का पूजन न करने तक ही मनुष्य
संसार में भटकता है । जिस तरह मानव का मन विषयों में मग्न होता है, वैसे ही यदि ब्रह्माजी में मन निमग्न रहे तो ऐसा कौन पुरुष होगा जो मुक्ति
नही प्राप्त कर सकता । ब्रह्माजी के जीर्ण एवं खण्डित मन्दिर का उद्धार करने वाला
प्राणी मुक्ति प्राप्त करता है । ब्रह्माजी के समान न कोई देवता है न गुरु,
न ज्ञान है और न कोई तप ही है ।
प्रतिपदा आदि सभी तिथियों में
भक्ति-पूर्वक ब्रह्माजी की पूजा कर पूर्णिमा के दिन विशेषरूप से पूजा करनी चाहिये
तथा शङ्ख, घण्टा, भेरी आदि वाद्य-ध्वनियों के साथ आरती एवं स्तुति करनी चाहिये । इस प्रकार
व्यक्ति जितने पर्वों पर आरती करता हैं, उतने हजार युग तक
ब्रह्मलोक में निवास और आनन्द का उपभोग करता है । कपिला गौ के पञ्चगव्य और कुशा के
जल से वेदमन्त्रों के द्वारा ब्रह्माजी को स्नान कराना ब्राह्म-स्नान कहलाता है ।
अन्य स्नानों से सौ गुना पुण्य इसमें अधिक होता है । यज्ञ एवं अग्निहोत्रादि के
लिये ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को कपिला गौ रखनी चाहिये ।
ब्रह्माजी की मूर्ति का कपिला गाय के घृत से अभ्यङ्ग करना चाहिये, इससे करोड़ों वर्षों के किये गये पापों का विनाश होता है । यदि प्रतिपदा के
दिन कोई एक बार भी घी से स्नान कराता है तो उसके इक्कीस पीढ़ी का उद्धार हो जाता है
। सुवर्ण-वस्त्रादि से अलंकृत दस हजार सवत्सा गौ वेदज्ञ ब्राह्मणों को देने से जो
पुण्य होता है, वही पूज्य ब्रह्माजी को दुग्ध से स्नान कराने
से प्राप्त होता है । एक बार भी दूध से ब्रह्माजी को स्नान करने वाला पुरुष सुवर्ण
के विमान से विराजमान हो ब्रह्मलोक में पहुँच जाता है । दही से स्नान कराने पर
विष्णुलोक की प्राप्ति होती है । शहद से स्नान कराने पर वीरलोक (इन्द्रलोक)- की
प्राप्ति होती है । ईख के रस से स्नान कराने पर सूर्यलोक की प्राप्ति होती है ।
शुद्धोदक से स्नान कराने पर सभी पापों से मुक्त होकर ब्रह्मलोक में निवास करता है
। वस्त्र से छने हुए जल से ब्रह्माजी को स्नान कराने पर वह सदा तृप्त रहता है और
सम्पूर्ण विश्व उसके वशीभूत हो जाता है । सर्वौषधियों से स्नान कराने पर ब्रह्मलोक,
चन्दन के जल से स्नान कराने पर रुद्रलोक, कमल
के पुष्प, नीलकमल, पाटला (लोध्र-लाल),
कनेर आदि सुंगधित पुष्पों से स्नान कराने पर ब्रह्मलोक में पूजित
होता है । कपूर और अगर के जल से स्नान करानेपर या गायत्री मंत्र से सौ बार जल को
अभिमंत्रित कर उस जल से स्नान कराने पर ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है । शीतल जल
या कपिला गाय के धारोष्ण दुग्ध से स्नान कराने के अनन्तर घृत से स्नान कराने से
सभी पापों से मनुष्य मुक्त हो जाता है । इन तीनों स्नानों को सम्पन्न कर
भक्तिपूर्वक पूजा करने से पूजक को अश्वमेध-यज्ञ का फल प्राप्त होता है । मिट्टी के
घड़े की अपेक्षा ताँबे के घट से ब्रह्माजी को स्नान कराने पर सौगुना, चाँदी के घट से लाख गुना फल होता है और सुवर्ण-कलश से स्नान कराने पर
कोटिगुना फल होता है । ब्रह्माजी के दर्शन से उनका स्पर्श करना श्रेष्ठ है,
स्पर्श से पूजन और पूजन से घृतस्नान अधिक फलदायक है । सभी वाचिक और
मानसिक पाप घृतस्नान कराने से नष्ट हो जाते है।
राजन् ! इस विधि से स्नान कराकर
भक्तिपूर्वक ब्रह्माजी की पूजा इस प्रकार करनी चाहिये –
पवित्र वस्त्र पहनकर, आसनपर बैठ सम्पूर्ण
न्यास करना चाहिये । प्रथम चार हाथ विस्तृत स्थान में एक अष्टदल – कमल का निर्माण करे । उसके मध्य नाना वर्ण-युक्त द्वादशदल – यन्त्र लिखे और पाँच रंगों से उसको भरे । इस प्रकार यन्त्र-निर्माण कर
गायत्री के वर्णों से न्यास करे ।
गायत्री के अक्षरों द्वारा शरीर में
न्यास कर देवता के शरीर में भी न्यास करना चाहिये । प्रणव-युक्त गायत्री मंत्र के
द्वारा अभिमन्त्रित केशर, अगर, चन्दन, कपूर आदि से समन्वित जल से सभी पूजा-द्रव्यों
का मार्जन करना चाहिये । अनन्तर पूजा करनी चाहिये । प्रणव का उच्चारण कर
पीठ-स्थापन और प्रणव से ही तेजःस्वरुप ब्रह्माजी का आवाहन करना चाहिये । पद्म पर
विराजमान, चार मुखों से युक्त चराचर विश्व की सृष्टि करने
वाले श्रीब्रह्माजी का ध्यान कर पूजा करनी चाहिये । जो पुरुष प्रतिपदा तिथि के दिन
भक्ति-पूर्वक गायत्री मन्त्र से ब्रह्माजी का पूजन करता हैं, वह चिरकाल तक ब्रह्मलोक में निवास करता है ।
भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व अध्याय १७
सम्पूर्ण।
आगे पढ़ें- भविष्यपुराण ब्राह्म पर्व अध्याय 18
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