श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय १२

श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय १२                                          

श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय १२ "इक्ष्वाकु वंश के शेष राजाओं का वर्णन"

श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय १२

श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: द्वादश अध्याय:

श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय १२                                                              

श्रीमद्भागवतपुराणम् स्कन्धः ९ अध्यायः १२                                                                 

श्रीमद्भागवत महापुराण नौवाँ स्कन्ध बारहवाँ अध्याय

श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय १२ श्लोक का हिन्दी अनुवाद सहित  

श्रीमद्भागवतम् नवमस्कन्धः

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

॥ द्वादशोऽध्यायः - १२ ॥

श्रीशुक उवाच

कुशस्य चातिथिस्तस्मान्निषधस्तत्सुतो नभः ।

पुण्डरीकोऽथ तत्पुत्रः क्षेमधन्वाभवत्ततः ॥ १॥

देवानीकस्ततोऽनीहः पारियात्रोऽथ तत्सुतः ।

ततो बलस्थलस्तस्माद्वज्रनाभोऽर्कसम्भवः ॥ २॥

खगणस्तत्सुतस्तस्माद्विधृतिश्चाभवत्सुतः ।

ततो हिरण्यनाभोऽभूद्योगाचार्यस्तु जैमिनेः ॥ ३॥

शिष्यः कौसल्य आध्यात्मं याज्ञवल्क्योऽध्यगाद्यतः ।

योगं महोदयमृषिर्हृदयग्रन्थिभेदकम् ॥ ४॥

पुष्यो हिरण्यनाभस्य ध्रुवसन्धिस्ततोऽभवत् ।

सुदर्शनोऽथाग्निवर्णः शीघ्रस्तस्य मरुः सुतः ॥ ५॥

योऽसावास्ते योगसिद्धः कलापग्राममाश्रितः ।

कलेरन्ते सूर्यवंशं नष्टं भावयिता पुनः ॥ ६॥

तस्मात्प्रसुश्रुतस्तस्य सन्धिस्तस्याप्यमर्षणः ।

महस्वांस्तत्सुतस्तस्माद्विश्वसाह्वोऽन्वजायत ॥ ७॥

ततः प्रसेनजित्तस्मात्तक्षको भविता पुनः ।

ततो बृहद्बलो यस्तु पित्रा ते समरे हतः ॥ ८॥

एते हीक्ष्वाकुभूपाला अतीताः शृण्वनागतान् ।

बृहद्बलस्य भविता पुत्रो नाम बृहद्रणः ॥ ९॥

ऊरुक्रियः सुतस्तस्य वत्सवृद्धो भविष्यति ।

प्रतिव्योमस्ततो भानुर्दिवाको वाहिनीपतिः ॥ १०॥

सहदेवस्ततो वीरो बृहदश्वोऽथ भानुमान् ।

प्रतीकाश्वो भानुमतः सुप्रतीकोऽथ तत्सुतः ॥ ११॥

भविता मरुदेवोऽथ सुनक्षत्रोऽथ पुष्करः ।

तस्यान्तरिक्षस्तत्पुत्रः सुतपास्तदमित्रजित् ॥ १२॥

बृहद्राजस्तु तस्यापि बर्हिस्तस्मात्कृतञ्जयः ।

रणञ्जयस्तस्य सुतः सञ्जयो भविता ततः ॥ १३॥

तस्माच्छाक्योऽथ शुद्धोदो लाङ्गलस्तत्सुतः स्मृतः ।

ततः प्रसेनजित्तस्मात्क्षुद्रको भविता ततः ॥ १४॥

रणको भविता तस्मात्सुरथस्तनयस्ततः ।

सुमित्रो नाम निष्ठान्त एते बार्हद्बलान्वयाः ॥ १५॥

इक्ष्वाकूणामयं वंशः सुमित्रान्तो भविष्यति ।

यतस्तं प्राप्य राजानं संस्थां प्राप्स्यति वै कलौ ॥ १६॥

श्रीशुकदेव जी कहते हैं ;- परीक्षित! कुश का पुत्र हुआ अतिथि, उसका निषध, निषध का नभ, नभ का पुण्डरीक और पुण्डरीक का क्षेमधन्वा। क्षेमधन्वा का देवानीक, देवानीक का अनीह, अनीह का पारियात्र, पारियात्र का बलस्थल और बलस्थल का पुत्र हुआ वज्रनाभ। यह सूर्य का अंश था।

वज्रनाभ से खगण, खगण से विधृति और विधृति से हिरण्यनाभ की उत्पत्ति हुई। वह जैमिनि का का शिष्य और योगाचार्य था। कोसल देशवासी याज्ञवल्क्य ऋषि ने उसकी शिष्यता स्वीकार करके उससे अध्यात्म योग की शिक्षा ग्रहण की थी। वह योग हृदय की गाँठ काट देने वाला तथा परमसिद्धि देने वाला है।

हिरण्यनाभ का पुष्य, पुष्य का ध्रुवसन्धि, ध्रुवसन्धि और सुदर्शन, सुदर्शन का अग्निवर्ण, अग्निवर्ण का शीघ्र और शीघ्र का पुत्र हुआ मरु। मरु ने योग साधना से सिद्धि प्राप्त कर ली और वह इस समय भी कलाप नामक ग्राम में रहता है। कलियुग के अन्त में सूर्यवंश के नष्ट हो जाने पर वह उसे फिर से चलायेगा।

मरु से प्रसुश्रुत, उससे सन्धि और सन्धि से अमर्षण का जन्म हुआ। अमर्षण का महस्वान् और महस्वान का विश्वसाह्व। विश्वसाह्व का प्रसेनजित्, प्रसेनजित् का तक्षक और तक्षक का पुत्र बृहद्वल हुआ। परीक्षित! इसी बृहद्वल को तुम्हारे पिता अभिमन्यु ने युद्ध में मार डाला था।

परीक्षित! इक्ष्वाकु वंश में इतने नरपति हो चुके हैं। अब आने वालों के विषय में सुनो। बृहद्वल का पुत्र होगा बृहद्रण। बृहद्रण का उरुक्रिय, उसका वत्सवृद्ध, वत्सवृद्ध का प्रतिव्योम, प्रतिव्योम का भानु और भानु का पुत्र होगा सेनापति दिवाक। दिवाक का वीर सहदेव, सहदेव का बृहदश्व, बृहदश्व का भानुमान, भानुमान का प्रतीकाश्व और प्रतीकाश्व का पुत्र होगा सुप्रतीक। सुप्रतीक का मरुदेव, मरुदेव का सुनक्षत्र, सुनक्षत्र का पुष्कर, पुष्कर का अन्तरिक्ष, अन्तरिक्ष का सुतपा और उसका पुत्र होगा अमित्रजित्। अमित्रजित से बृहद्राज, बृहद्राज से बर्हि, बर्हि से कृतंजय, कृतंजय से रणंजय और उससे संजय होगा। संजय का शाक्य, उसका शुद्धोद और शोद्धोद का लांगल, लांगल का प्रसेनजित् और प्रसेनजित का पुत्र क्षुद्रक होगा। क्षुद्रक से रणक, रणक से सुरथ और सुरथ से इस वंश के अन्तिम राजा सुमित्र का जन्म होगा। ये सब बृहद्वल के वंशधर होंगे। इक्ष्वाकु का यह वंश सुमित्र तक ही रहेगा। क्योंकि सुमित्र के राजा होने पर कलियुग में यह वंश समाप्त हो जायेगा।

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां नवमस्कन्धे इक्ष्वाकुवंशवर्णनं नाम द्वादशोऽध्यायः ॥ १२॥

जारी-आगे पढ़े............... नवम स्कन्ध: त्रयोदशोऽध्यायः

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