श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय २२

श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय २२                                                   

श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय २२ "पांचाल, कौरव और मगध देशीय राजाओं के वंश का वर्णन"

श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय २२

श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: द्वाविंश अध्याय:

श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय २२                                                                       

श्रीमद्भागवतपुराणम् स्कन्धः ९ अध्यायः २२ 

श्रीमद्भागवत महापुराण नौवाँ स्कन्ध बाईसवाँ अध्याय

श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध ९ अध्याय २२ श्लोक का हिन्दी अनुवाद सहित  

श्रीमद्भागवतम् नवमस्कन्धः

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

॥ द्वाविंशोऽध्यायः - २२ ॥

श्रीशुक उवाच

मित्रेयुश्च दिवोदासाच्च्यवनस्तत्सुतो नृप ।

सुदासः सहदेवोऽथ सोमको जन्तुजन्मकृत् ॥ १॥

तस्य पुत्रशतं तेषां यवीयान् पृषतः सुतः ।

(स तस्माद्द्रुपदो जज्ञे सर्वसम्पत्समन्वितः ।)

द्रुपदो द्रौपदी तस्य धृष्टद्युम्नादयः सुताः ॥ २॥

धृष्टद्युम्नाद्धृष्टकेतुर्भार्म्याः पञ्चालका इमे ।

योऽजमीढसुतो ह्यन्य ऋक्षः संवरणस्ततः ॥ ३॥

तपत्यां सूर्यकन्यायां कुरुक्षेत्रपतिः कुरुः ।

परीक्षित्सुधनुर्जह्नुर्निषधाश्वः कुरोः सुताः ॥ ४॥

सुहोत्रोऽभूत्सुधनुषश्च्यवनोऽथ ततः कृती ।

वसुस्तस्योपरिचरो बृहद्रथमुखास्ततः ॥ ५॥

कुशाम्बमत्स्यप्रत्यग्रचेदिपाद्याश्च चेदिपाः ।

बृहद्रथात्कुशाग्रोऽभूदृषभस्तस्य तत्सुतः ॥ ६॥

जज्ञे सत्यहितोऽपत्यं पुष्पवांस्तत्सुतो जहुः ।

अन्यस्यां चापि भार्यायां शकले द्वे बृहद्रथात् ॥ ७॥

ते मात्रा बहिरुत्सृष्टे जरया चाभिसन्धिते ।

जीव जीवेति क्रीडन्त्या जरासन्धोऽभवत्सुतः ॥ ८॥

ततश्च सहदेवोऽभूत्सोमापिर्यच्छ्रुतश्रवाः ।

परीक्षिदनपत्योऽभूत्सुरथो नाम जाह्नवः ॥ ९॥

ततो विदूरथस्तस्मात्सार्वभौमस्ततोऽभवत् ।

जयसेनस्तत्तनयो राधिकोऽतोऽयुतो ह्यभूत् ॥ १०॥

ततश्च क्रोधनस्तस्माद्देवातिथिरमुष्य च ।

ऋष्यस्तस्य दिलीपोऽभूत्प्रतीपस्तस्य चात्मजः ॥ ११॥

देवापिः शन्तनुस्तस्य बाह्लीक इति चात्मजाः ।

पितृराज्यं परित्यज्य देवापिस्तु वनं गतः ॥ १२॥

अभवच्छन्तनू राजा प्राङ्महाभिषसंज्ञितः ।

यं यं कराभ्यां स्पृशति जीर्णं यौवनमेति सः ॥ १३॥

शान्तिमाप्नोति चैवाग्र्यां कर्मणा तेन शन्तनुः ।

समा द्वादश तद्राज्ये न ववर्ष यदा विभुः ॥ १४॥

शन्तनुर्ब्राह्मणैरुक्तः परिवेत्तायमग्रभुक् ।

राज्यं देह्यग्रजायाशु पुरराष्ट्रविवृद्धये ॥ १५॥

एवमुक्तो द्विजैर्ज्येष्ठं छन्दयामास सोऽब्रवीत् ।

तन्मन्त्रिप्रहितैर्विप्रैर्वेदाद्विभ्रंशितो गिरा ॥ १६॥

वेदवादातिवादान् वै तदा देवो ववर्ष ह ।

देवापिर्योगमास्थाय कलापग्राममाश्रितः ॥ १७॥

श्रीशुकदेव जी कहते हैं ;- परीक्षित! दिवोदास का पुत्र था मित्रेयु। मित्रेयु के चार पुत्र हुए- च्यवन, सुदास, सहदेव और सोमक। सोमक के सौ पुत्र थे, उनमें सबसे बड़ा जन्तु और सबसे छोटा पृषत था। पृषत के पुत्र द्रुपद थे, द्रुपद के द्रौपदी नाम की पुत्री और धृष्टद्युम्न आदि पुत्र हुए। धृष्टद्युम्न का पुत्र था धृष्टकेतु।

भर्म्याश्व के वंश में उत्पन्न हुए ये नरपति पांचालकहलाये। अजमीढ का दूसरा पुत्र था ऋक्ष। उनके पुत्र हुए संवरण। संवरण का विवाह सूर्य की कन्या तपती से हुआ। उन्हीं के गर्भ से कुरुक्षेत्र के स्वामी कुरु का जन्म हुआ। कुरु के चार पुत्र हुए- परीक्षित, स्धन्वा, जह्नु और निषधाश्व। सुधन्वा से सुहोत्र, सुहोत्र से च्यवन, च्यवन से कृती, कृती से उपरिचरवसु और उपरिचरवसु से बृहद्रथ आदि कई पुत्र उत्पन्न हुए। उनमें बृहद्रथ, कुशाम्ब, मत्स्य, प्रत्यग्र और चेदिप आदि चेदि देश के राजा हुए। बृहद्रथ का पुत्र था कुशाग्र, कुशाग्र का ऋषभ, ऋषभ का सत्यहित, सत्यहित का पुष्पवान और पुष्पवान् के जहु नामक पुत्र हुआ। बृहद्रथ की दूसरी पत्नी के गर्भ से एक शरीर के दो टुकड़े उत्पन्न हुए। उन्हें माता ने बाहर फेंकवा दिया। तब जरा नाम की राक्षसी ने जियो, जियोइस प्रकार कहकर खेल-खेल में उन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया। उसी जोड़े हुए बालक का नाम हुआ जरासन्ध।

जरासन्ध का सहदेव, सहदेव का सोमापि और सोमापि का पुत्र हुआ श्रुतश्रवा। कुरु के ज्येष्ठ पुत्र परीक्षित के कोई सन्तान न हुई। जह्नु का पुत्र था सुरथ। सुरथ का विदूरथ, विदूरथ का सार्वभौम, सार्वभौम का जयसेन, जयसेन का राधिक और राधिक का पुत्र हुआ अयुत। अयुत का क्रोधन, क्रोधन का देवातिथि, देवातिथि का ऋष्य, ऋष्य का दिलीप और दिलीप का पुत्र प्रतीप हुआ। प्रतीप के तीन पुत्र थे- देवापि, शान्तनु और बाह्लीक। देवापि अपना पैतृक राज्य छोड़कर वन में चला गया। इसलिये उसके छोटे भाई शान्तनु राजा हुए।

पूर्वजन्म में शान्तनु का नाम महाभिष था। इस जन्म में भी वे अपने हाथों से जिसे छू देते थे, वह बूढ़े से जवान हो जाता था। उसे परमशान्ति मिल जाती थी। इसी करामात के कारण उनका नाम शान्तनुहुआ। एक बार शान्तनु के राज्य में बारह वर्ष तक इन्द्र ने वर्षा नहीं की। इस पर ब्राह्मणों ने शान्तनु से कहा कि तुमने अपने बड़े भाई देवापि से पहले ही विवाह, अग्निहोत्र और राजपद को स्वीकार कर लिया, अतः तुम परिवेत्ता हो; इसी से तुम्हारे राज्य में वर्षा नहीं होती। अब यदि तुम अपने नगर और राष्ट्र की उन्नति चाहते हो, तो शीघ्र-से-शीघ्र अपने बड़े भाई को राज्य लौटा दो

जब ब्राह्मणों ने शान्तनु से इस प्रकार कहा, तब उन्होंने वन में जाकर अपने बड़े भाई देवापि से राज्य स्वीकार करने का अनुरोध किया। परन्तु शान्तनु के मन्त्री अश्वमरात ने पहले से ही उनके पास कुछ ऐसे ब्राह्मण भेज दिये थे, जो वेद को दूषित करने वाले वचनों से देवापि को वेदमार्ग से विचलित कर चुके थे। इसका फल यह हुआ कि देवापि वेदों के अनुसार गृहस्थाश्रम स्वीकार करने की जगह उसकी निन्दा करने लगे। इसलिये वे राज्य के अधिकार से वंचित हो गये और तब शान्तनु के राज्य में वर्षा हुई। देवापि इस समय भी योग साधना कर रहे हैं और योगियों के प्रसिद्ध निवास स्थाल कलापग्राम में रहते हैं।

सोमवंशे कलौ नष्टे कृतादौ स्थापयिष्यति ।

बाह्लीकात्सोमदत्तोऽभूद्भूरिर्भूरिश्रवास्ततः ॥ १८॥

शलश्च शन्तनोरासीद्गङ्गायां भीष्म आत्मवान् ।

सर्वधर्मविदां श्रेष्ठो महाभागवतः कविः ॥ १९॥

वीरयूथाग्रणीर्येन रामोऽपि युधि तोषितः ।

शन्तनोर्दाशकन्यायां जज्ञे चित्राङ्गदः सुतः ॥ २०॥

विचित्रवीर्यश्चावरजो नाम्ना चित्राङ्गदो हतः ।

यस्यां पराशरात्साक्षादवतीर्णो हरेः कला ॥ २१॥

वेदगुप्तो मुनिः कृष्णो यतोऽहमिदमध्यगाम् ।

हित्वा स्वशिष्यान् पैलादीन् भगवान् बादरायणः ॥ २२॥

मह्यं पुत्राय शान्ताय परं गुह्यमिदं जगौ ।

विचित्रवीर्योऽथोवाह काशिराजसुते बलात् ॥ २३॥

स्वयंवरादुपानीते अम्बिकाम्बालिके उभे ।

तयोरासक्तहृदयो गृहीतो यक्ष्मणा मृतः ॥ २४॥

क्षेत्रेऽप्रजस्य वै भ्रातुर्मात्रोक्तो बादरायणः ।

धृतराष्ट्रं च पाण्डुं च विदुरं चाप्यजीजनत् ॥ २५॥

गान्धार्यां धृतराष्ट्रस्य जज्ञे पुत्रशतं नृप ।

तत्र दुर्योधनो ज्येष्ठो दुःशला चापि कन्यका ॥ २६॥

शापान्मैथुनरुद्धस्य पाण्डोः कुन्त्यां महारथाः ।

जाता धर्मानिलेन्द्रेभ्यो युधिष्ठिरमुखास्त्रयः ॥ २७॥

नकुलः सहदेवश्च माद्र्यां नासत्यदस्रयोः ।

द्रौपद्यां पञ्च पञ्चभ्यः पुत्रास्ते पितरोऽभवन् ॥ २८॥

युधिष्ठिरात्प्रतिविन्ध्यः श्रुतसेनो वृकोदरात् ।

अर्जुनाच्छ्रुतकीर्तिस्तु शतानीकस्तु नाकुलिः ॥ २९॥

सहदेवसुतो राजन् श्रुतकर्मा तथापरे ।

युधिष्ठिरात्तु पौरव्यां देवकोऽथ घटोत्कचः ॥ ३०॥

भीमसेनाद्धिडिम्बायां काल्यां सर्वगतस्ततः ।

सहदेवात्सुहोत्रं तु विजयासूत पार्वती ॥ ३१॥

करेणुमत्यां नकुलो नरमित्रं तथार्जुनः ।

इरावन्तमुलुप्यां वै सुतायां बभ्रुवाहनम् ।

मणिपूरपतेः सोऽपि तत्पुत्रः पुत्रिकासुतः ॥ ३२॥

जब कलियुग में चन्द्र वंश का नाश हो जायेगा, तब सत्ययुग के प्रारम्भ में वे फिर उसकी स्थापना करेंगे। शान्तनु के छोटे भाई बाह्लीक का पुत्र हुआ सोमदत्त। सोमदत्त के तीन पुत्र हुए- भूरि, भूरिश्रवा और शल। शान्तनु के द्वारा गंगाजी के गर्भ से नैष्ठिक ब्रह्मचारी भीष्म का जन्म हुआ। वे समस्त धर्मज्ञों के सिरमौर, भगवान् के परम प्रेमी भक्त और परम ज्ञानी थे। वे संसार के समस्त वीरों के अग्रगण्य नेता थे। औरों की तो बात ही क्या, उन्होंने अपने गुरु भगवान् परशुराम को भी युद्ध में सन्तुष्ट कर दिया था।

शान्तनु के द्वारा दाशराज की कन्या के गर्भ से दो पुत्र हुए- चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद और चित्रांगद नामक गन्धर्व ने मार डाला। इसी दाशराज की कन्या सत्यवती से पराशर जी के द्वारा मेरे पिता, भगवान् के कलावतार स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास जी अवतीर्ण हुए थे। उन्होंने वेदों की रक्षा की।

परीक्षित! मैंने उन्हीं से इस श्रीमद्भागवत पुराण का अध्ययन किया था। यह पुराण परम गोपनीय-अत्यन्त रहस्यमय है। इसी से मेरे पिता भगवान् व्यास जी ने अपने पैल आदि शिष्यों को इसका अध्ययन नहीं कराया, मुझे ही इसके योग्य अधिकारी समझा। एक तो मैं उनका पुत्र था और दूसरे शान्ति आदि गुण भी मुझमें विशेष रूप से थे। शान्तनु के दूसरे पुत्र विचित्रवीर्य ने काशिराज की कन्या अम्बिका और अम्बालिका से विवाह किया। उन दोनों को भीष्म जी स्वयंर से बलपूर्वक ले आये थे। विचित्रवीर्य अपनी दोनों पत्नियों में इतना आसक्त हो गया कि उसे राजयक्ष्मा रोग हो गया और उसकी मृत्यु हो गयी। माता सत्यवती के कहने से भगवान व्यास जी ने अपने सन्तानहीन भाई की स्त्रियों से धृतराष्ट्र और पाण्डु दो पुत्र उत्पन्न किये। उनकी दासी से तीसरे पुत्र विदुर जी हुए।

परीक्षित! धृतराष्ट्र की पत्नी थी गान्धारी। उसके गर्भ से सौ पुत्र हुए, उनमें सबसे बड़ा था दुर्योधन। कन्या का नाम था दुःशला। पाण्डु की पत्नी थी कुन्ती। शापवश पाण्डु स्त्री-सहवास नहीं कर सकते थे। इसलिये उनकी पत्नी कुन्ती के गर्भ से धर्म, वायु और इन्द्र के द्वारा क्रमशः युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन नाम के तीन पुत्र उत्पन्न हुए। ये तीनों-के-तीनों महारथी थे। पाण्डु की दूसरी पत्नी का नाम था माद्री। दोनों अश्विनीकुमारों के द्वारा उसके गर्भ से नकुल और सहदेव का जन्म हुआ। परीक्षित! इन पाँच पाण्डवों के द्वारा द्रौपदी के गर्भ से तुम्हारे पाँच चाचा उत्पन्न हुए। इसमें से युधिष्ठिर के पुत्र का नाम था प्रतिविन्ध्य, भीमसेन का पुत्र था श्रुतसेन, अर्जुन का श्रुतकीर्ति, नकुल का शतानीक और सहदेव का श्रुतकर्मा।

इसके सिवा युधिष्ठिर के पौरवी नाम की पत्नी से देवक और भीमसेन के हिडिम्बा से घटोत्कच और काली से सर्वगत नाम के पुत्र हुए। सहदेव के पर्वतकुमारी विजया से सुहोत्र और नकुल के करेणुमती से निरमित्र हुआ। अर्जुन द्वारा नागकन्या उलूपी के गर्भ से इरावान और मणिपुर नरेश की कन्या से बभ्रुवाहन का जन्म हुआ। बभ्रुवाहन अपने नाना का ही पुत्र माना गया, क्योंकि पहले से ही यह बात तय हो चुकी थी।

तव तातः सुभद्रायामभिमन्युरजायत ।

सर्वातिरथजिद्वीर उत्तरायां ततो भवान् ॥ ३३॥

परिक्षीणेषु कुरुषु द्रौणेर्ब्रह्मास्त्रतेजसा ।

त्वं च कृष्णानुभावेन सजीवो मोचितोऽन्तकात् ॥ ३४॥

तवेमे तनयास्तात जनमेजयपूर्वकाः ।

श्रुतसेनो भीमसेन उग्रसेनश्च वीर्यवान् ॥ ३५॥

जनमेजयस्त्वां विदित्वा तक्षकान्निधनं गतम् ।

सर्पान् वै सर्पयागाग्नौ स होष्यति रुषान्वितः ॥ ३६॥

कावषेयं पुरोधाय तुरं तुरगमेधयाट् ।

समन्तात्पृथिवीं सर्वां जित्वा यक्ष्यति चाध्वरैः ॥ ३७॥

तस्य पुत्रः शतानीको याज्ञवल्क्यात्त्रयीं पठन् ।

अस्त्रज्ञानं क्रियाज्ञानं शौनकात्परमेष्यति ॥ ३८॥

सहस्रानीकस्तत्पुत्रस्ततश्चैवाश्वमेधजः ।

असीमकृष्णस्तस्यापि नेमिचक्रस्तु तत्सुतः ॥ ३९॥

गजाह्वये हृते नद्या कौशाम्ब्यां साधु वत्स्यति ।

उक्तस्ततश्चित्ररथस्तस्मात्कविरथः सुतः ॥ ४०॥

तस्माच्च वृष्टिमांस्तस्य सुषेणोऽथ महीपतिः ।

सुनीथस्तस्य भविता नृचक्षुर्यत्सुखीनलः ॥ ४१॥

परिप्लवः सुतस्तस्मान्मेधावी सुनयात्मजः ।

नृपञ्जयस्ततो दूर्वस्तिमिस्तस्माज्जनिष्यति ॥ ४२॥

तिमेर्बृहद्रथस्तस्माच्छतानीकः सुदासजः ।

शतानीकाद्दुर्दमनस्तस्यापत्यं महीनरः ॥ ४३॥

दण्डपाणिर्निमिस्तस्य क्षेमको भविता नृपः ।

ब्रह्मक्षत्रस्य वै प्रोक्तो वंशो देवर्षिसत्कृतः ॥ ४४॥

क्षेमकं प्राप्य राजानं संस्थां प्राप्स्यति वै कलौ ।

अथ मागधराजानो भवितारो वदामि ते ॥ ४५॥

भविता सहदेवस्य मार्जारिर्यच्छ्रुतश्रवाः ।

ततोऽयुतायुस्तस्यापि निरमित्रोऽथ तत्सुतः ॥ ४६॥

सुनक्षत्रः सुनक्षत्राद्बृहत्सेनोऽथ कर्मजित् ।

ततः सुतञ्जयाद्विप्रः शुचिस्तस्य भविष्यति ॥ ४७॥

क्षेमोऽथ सुव्रतस्तस्माद्धर्मसूत्रः शमस्ततः ।

द्युमत्सेनोऽथ सुमतिः सुबलो जनिता ततः ॥ ४८॥

सुनीथः सत्यजिदथ विश्वजिद्यद्रिपुञ्जयः ।

बार्हद्रथाश्च भूपाला भाव्याः साहस्रवत्सरम् ॥ ४९॥

अर्जुन की सुभद्रा नाम की पत्नी से तुम्हारे पिता अभिमन्यु का जन्म हुआ। वीर अभिमन्यु ने सभी अतिरथियों को जीत लिया था। अभिमन्यु के द्वारा उत्तरा के गर्भ से तुम्हारा जन्म हुआ। परीक्षित! उस समय कुरु वंश का नाश हो चुका था। अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से तुम भी जल ही चुके थे, परन्तु भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्रभाव से तुम्हें उस मृत्यु से जीता-जागता बचा लिया।

परीक्षित! तुम्हारे पुत्र तो सामने ही बैठे हुए हैं, इनके नाम हैं- जनमेजय, श्रुतसेन, भीमसेन और उग्रसेन। ये सब-के-सब बड़े पराक्रमी हैं।

जब तक्षक के काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी, तब इस बात को जानकर जनमेजय बहुत क्रोधित होगा और यह सर्प-यज्ञ की आग में सर्पों का हवन करेगा। यह कावषेय तुर को पुरोहित बनाकर अश्वमेध यज्ञ करेगा और सब ओर से सारी पृथ्वी पर विजय प्राप्त करके यज्ञों के द्वारा भगवान् की आराधना करेगा।

जनमेजय का पुत्र होगा शतानीक। वह याज्ञवल्क्य ऋषि से तीनों वेद और कर्मकाण्ड की तथा कृपाचार्य से अस्त्र विद्या की शिक्षा प्राप्त करेगा एवं शौनक जी से आत्मज्ञान का सम्पादन करके परमात्मा को प्राप्त होगा। शतानीक का सहस्रनीक, सहस्रनीक का अश्वमेधज, अश्वमेधज का असीमकृष्ण और असीमकृष्ण का पुत्र होगा नेमिचक्र। जब हस्तिनापुर गंगाजी में बह जायेगा, तब वह कौशाम्बीपुरी में सुखपूर्वक निवास करेगा। नेमिचक्र का पुत्र होगा चित्ररथ, चित्ररथ का कविरथ, कविरथ का वृष्टिमान्, वृष्टिमान् का राजा सुषेण, सुषेण का सुनीथ, सुनीथ का नृचक्षु, नृचक्षु का सुखीनल, सुखीनल का परिप्लव, परिप्लव का सुनय, सुनय का मेधावी, मेधावी का नृपंजय, नृपंजय का दूर्व और दूर्व का पुत्र तिमी होगा। तिमी से बृहद्रथ, बृहद्रथ से सुदास, सुदास से शतानीक, शतानीक से दुर्दमन, दुर्दमन से वहीनर, वहीनर से दण्डपाणि, दण्डपाणि से तिमी और निमि से राजा क्षेमक का जन्म होगा।

इस प्रकार मैंने तुम्हें ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों उत्पत्ति स्थान सोम वंश का वर्णन सुनाया। बड़े-बड़े देवता और ऋषि इस वंश का सत्कार करते हैं। यह वंश कलियुग में राजा क्षेमक के साथ ही समाप्त हो जायेगा। अब मैं भविष्य में होने वाले मगध देश के राजाओं का वर्णन सुनाता हूँ।

जरासन्ध के पुत्र सहदेव से मार्जारि, मार्जारि से श्रुतश्रवा, श्रुतश्रवा से अयुतायु और अयुतायु से निरमित्र नामक पुत्र होगा। निरमित्र के सुनक्षत्र, सुनक्षत्र के बृहत्सेन, बृहत्सेन के कर्मजित्, कर्मजित् के सृतंजय, सृतंजय के विप्र और विप्र के पुत्र का नाम होगा शुचि। शुचि से क्षेम, क्षेम से सुव्रत, सुव्रत से धर्मसूत्र, धर्मसूत्र से शम, शम से द्युमत्सेन, द्युमत्सेन से सुमति और सुमति से सुबल का जन्म होगा। सुबल का सुनीथ, सुनीथ का सत्यजित, सत्यजित का विश्वजित और विश्वजित का पुत्र रिपुंजय होगा। ये सब बृहद्रथ वंश के राजा होंगे। इसका शासनकाल एक हजार वर्ष के भीतर ही होगा।

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां नवमस्कन्धे द्वाविंशोऽध्यायः ॥ २२॥

जारी-आगे पढ़े............... नवम स्कन्ध: त्रयोविंशोऽध्यायः

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